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शास्त्रचा समुच्चय-स्तक र लो० १०८ कपमनेनारमा संयुज्यते :मुलम्-- हे तमोऽस्य समाख्यासाः पूर्व दिसाऽवतादयः ।
वान् संयुश्यते तेन विचित्रफलदायिना ॥१०८॥ मस्य-कर्मणः पूर्व-"हिंसातादयः पञ्च" इत्यादि [का०५] निरूपणका, हिंसा नृतादयो हेतवः समारख्याताः । सदान-तक्रियाध्यवसायपरिणतः, विचित्रकलदापिना तेन कर्मणा, संयुज्यते अन्योन्यसम्बन्धेन बध्यते॥१०८|| उक्तेषु वादेषु का श्रेयान ? इनि विवेचतिमलम् -नैवै होट बाधा यात्मद्भिश्वास्याऽनिवारिता ।
- तदेनमा विद्वांसस्तत्ववाद प्रक्षते ॥१.९|| एत्रमात्मनः कर्मसंयोगे स्वीक्रियमाणे, न दृष्टेपूवाधा, अमृतस्यापि मूर्सन सहाफाशादी संयोगस्य दर्शनात् अमृतस्यापि ज्ञानस्य प्राग्रीवोपभोग-मद्यपानादिनानुनहोपातयोरिष्टलाच । सिदिवास्य फर्भगः, उक्तविशाऽनिवर्गरता-प्रतितोऽवाधिवप्रसरा तत्तत्माच कारणाव, एन अबाइमेय, विद्रातः मध्यस्थमोतार्थाः, तत्त्ववाद-मामाणिकाभ्युपगम, प्रचक्षते ।।१०९॥ लिप कहा गया है कि ये सारे नाम भिन्न भिन्न रूपों से एक ही तारिखक भर्थ का उपक होते है, एक दो अर्थ का प्रतिपादन करते हैं। और हम में इस प्रकार का पर्यावरण, जिसे 'समानप्रवृत्तिनिर्मिनकस्बे सति विनिम्नानुपूर्वी कस्वरूप में परिभाषित किया जाता है, नहीं है। यह दूसरे प्रकार का पर्यायल्प किसी वस्तु के इन नामों में होता है जो एक ही रूप से पदी वस्तु के बोधक होसे है, किन्तु इनके मानुषीसरूप में मे होता है, जैसे भूप मोर भूगाळ शम्, ये दोनों शम् भूमिपालकत्व' इस प री कप से 'राजा' के पोधक हैं और दोनों के भानु-स्वरूप में मे हैtos
[अद के साथ भात्मा के सम्बन्ध को प्रक्रिया] १०८ वी कारिका में यह बताया गया है कि कर्म के साथ मारमा का सम्पन्ध कैसे होता है। कारिका का अर्थ इस प्रकार है
बर्म के हिसा-अन्त भादि य कारण पहले बताये जा चुके हैं। जो आत्मा इम पांचों में से किसी एक या एकाधिक मथषा सभी कियाों को करने का मध्यवसाय करता है यह यिन्यित्र फलों के जनक कर्म से पंधता, कर्म मोर मात्मा का यह मात्र जभपपक्षीय होता है, अर्थात् कर्म से आरमा और आम्मा से कर्म का परस्पर पब होता है।॥१०८ ॥
सपी कारिका में यद बताया गया है कि 'मरसिद्धि के सम्पर्म में कडे गये बादी में कौन वाद सय श्रेष्ठ है. अब इस प्रकार है
मामा का कम से धन्ध स्वीकार करने पर कोई अष्टपाधा या एबाधा नहीं क्योंकि मेसे भामाश आदि शमूत द्रव्य में घट मादि मूर्तवष्य का संयोग मान्य है उसी