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शास्त्रपालमुख्यष-स्तबकलो. १५ पराकूतमाशय मिराकुरुतेमूलम्-'भूतानां तस्वभावस्वादयामि यस्यनुताम् |
न भूतात्मक पवारमेत्येतदव निदर्शितम् ॥ १४ ॥ भूताना-राजादिपरिणतभूतानां, तरम्पमावाबान-विचित्रमोगहेतुस्वभात्यात्, अब फलभेवा', इत्यपि धायकोकम्. अनुत्तरम् - उत्तराभासा । कुतः १ इत्याह-'यता' इति शेषः, 'भूतात्मक पवात्मा म इत्येनत्, मत्र-पूर्वपघटके, मिदर्शित-व्यवस्पापितम् । प्रात्मस्वमात्रभेदश्वाऽदृष्ट्वाधीन इति भावः ॥१४॥ 'भूतपदस्थाहीतविशेषस्योपादाने उत्तरमेव वैतत', इति स्वाभिमायादार
मूडम्- कर्मणो भौतित्वेन यतदपि साम्प्रतम् ।।
___ यात्मनो व्यतिरिक्तं तचित्रमा यतो मतम् ॥ १५ ॥ कर्मणः अस्य, भौतिकापेनम्पौद्गलिकत्वेन, एनदाप='भूतानां तत्स्वभावत्वात फलभेद' इत्युत्तरमपि, 'यद्रा' इति प्रकारान्तरे, सा प्रसं-समीचीनस् ।
साधन समान होने पर भी फलमे कैसे होता है। इस प्रश्न के सम्बन्ध में पाक का उत्तर गा.कि- "पृषिधी. जल शारि भृतहटयों का राग, र आदि के शरीर के कप में शो चाचा परिणाम होता है, तो मामा, वे अपने म स्वमाश्चिय सेही वियत्रभोग के हेनु दाने हैं, अतः भोगवैचित्र्य के लिये अप्ठ की कल्पना आषषयक नहीं है"-किन्तु उक्त प्रवन का उत्तर समीचीन उसर होकर उत्तराभास है, क्योकि भूतो के शरात्मक परिणाम भी भूत ही है और 'सारमा भूतस्वरूप नहीं हो सकता' या तश्य पूर्व प्रकरण में युक्ति प्रमाणों द्वारा प्रतिष्ठिन किया जा चुका है। यदि कहा जाय कि-. "आमा को भूत भिन्न मानने पर भी उममें स्यभायमेव तो माननाही होगा, अन्यथा समो भात्मा को समानस्वरूप का ही मानने पर भूतभिन्न मात्मा से भी भोगविण की उपपत्ति न हो सगो। तो इस प्रकार अब भारमा के स्वभाषमेव से पी भोगमेर की आपत्ति हो सकती है तब मष्टपू की कपना अनावश्यक है-" किन्तु यह कथा ठीक नहीं है कि सभी आत्मा ध्यरूप में समान है. उनमें कोई सहज स्वभावमे नहीं होता, मनः उम में मावश्यक स्वमायमेव की उपपत्ति के लिये मायमेव की कम्पना भमिधार्य है ॥२४॥
[ फर्म भौतिक होने से चायाक मन का औचित्य ] इस कारिका ९५ में यह पताया गया है कि- " भूतम्रव्यों के परिणाम ही अपने म्वभाषमे से फराभेद को सम्मारक होते है"बाक का यह उत्तर भाईनों की छाप में सीबीमद भाशय यह है कि यदि यह ने कमा प्राय कि 'रामा, रक भावि के शरीराम्मक भूतपरिणाम ही अपने स्त्रमायमेर से फटमेद को सम्पादक होते हैकिन्तु इसमा ही कहा जाय कि- 'भूती के परिणामही अपने स्वभाषमेर से फलमेरक सम्मारक होते. तो या कैयन माता की मान्यता के अनुसार अबित ही है, कि आदत के अनुसार प्राय भी प्रतिकित है, भूतदयों का यह विशिष्ट परित णाम होव, म. उसे स्वभाव से फलमे का प्रपोजक मानने पर भूतवष्य के परि