SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 312
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Eur • टोका• दि. २३ मितेरनुदयाद रहिव्याप्यधूमत्यापन्निप्रकारतानिरूपितपर्वतत्यावच्छिन्नमुरुषविशेष्यताकनिश्चयत्वेनानुमितिहेतुस्वात, स्त्रप्रकाशनये तु पर्वतस्य मानविशेष्यत्यान तदतिरिक्तविशेध्यतानिरूपितप्रकारलानात्मकत्व-शुरूपत्वनिवेशे गौरवमिति, मन्न, स्वप्रकाश्यस्य व्यवसायालुक्यवसायोमयाकारत्वेऽपविरोधाद। तव मानमानसादो बहन्यनुमितिसामग्या दिप्रतिबन्धकल्वकल्पने महागौरवान्, घटचाक्षुषे सनि चानुपसामग्या सत्य तदनुम्यचसायानुपपसंवा तदानीं चक्षुमनायोगादिवि मकल्पनायां मानाभावान, परदर्शनोत्तर माहत्येव पटरर्शनान्, तदा चक्षुर्मनोयोगान्तगदिकल्पनयाऽनिगौग्यात् । प्यधूमघत्पर्वतवान् देशः' इस प्रकार के निश्चय से उक्त अनुमिति का जन्म नहीं होता । इस लिये वहिल्यायधूमधापन्छिम्न नकारतानिरूपितपर्षमयावच्छिन्नामुग्यविशेष्यताम निश्चय कोही भनुमिति का कारण माना जाता है । उक्त 'पर्वतवान् देश' या, सान पर्धनमुख्यविशेष्यक माहीं है, क्योंकि इस मान को पर्वत मिष्ठविशेप्यता में प्रकारताभिग्नरवरूप मुखमय नही है । अम! इस हार से क्रि की अमिति की भारमि नहीं हो सकती । पान को स्वप्रकाश मानने पर पर्वत में लियायधूम का समर्श 'मिस्याप्यमवरपर्वतं मानमि' म प्रकार का ही होगा कार इस में शानरूप विशेष्य में पर्यत विशेषण है, अतः पर्वतनिष्ठविशेषयता शाननिष्ठविशेष्यतानिरूपित कामतास्वरूप मोने से यद भान पर्वनमुगिशेप्य महों है. अतः इससे मनुमिति का जमन न हो सकेगा । इस आपत्ति के निराकरणार्थ यदि पमियशेष्यता में त्रानभन' नवशेष्यनानिपित्तप्रकारताभिन्मस्वरूप मुख्यत्व का निवेश किया जायगा नी कारण तापलेक में गोरष होगा, अतः शाम को स्वप्रकाश मानना असंगत है - इस संका का उत्तर यह है फि हाम को स्यप्रकाश मानने पर यदि उसे मनुव्यवसाय के ही आकार में स्वीकृत किया जाय तो पहनापत्ति भयश्य हागी, पर यति उसे केवल अनुष्यपसाय के आकार का न मानकर व्यवसाय और अनुव्यषलाय दोनो आकार का मामा आयगा तो पर भापति नहीं हो सकती क्योंकि जय पर्वत में शिष्यायधम का परामर्श 'पर्वती शिव्यायभूमधान' तथा 'मद वाशिव्याप्यधूमवत्पर्वतं जानामि' इस प्रकार के भाकार का होगा तो इस में पर्यतनिष्ट पक विशेष्यता शानिष्ठविशेष्यतानिरूप्रकारता से अभिग्म होने पर भी पतनिष्ठ सही योग्यता में कारताभिनन्यस्यरूप मुण्यत्व कोने से इसे अनुमति का कारण होने में कोई बाधा नहीं हो सकती1 ज्ञान को मनोमान मानने में गौरव दोष शाम को स्वप्रकाश न मान फर यदि उसे मानसप्रत्यक्ष का विषय माना जायमा तो चलि मादि के अनुमिति के पूर्य होते घाले परामशरिमा शान के मानमप्रत्यक्ष की शामिप्तिकाल में उपसि के धारणार्थ अनुमितिसामग्री को मानसप्रत्यक्ष का प्रतिबन्धक
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy