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________________ २१॥ शास्त्रषातासमुकमय-स्तथक १ प्लोक ८४ किच, 'अरे, घसानवान' इतिवद 'मयि घटज्ञानम्' इत्यप्यनुभवो नेच्छामात्रेणापहोतुं वाक्यो, तत्र न व्यत्र पायम्य विशेयस्याऽसमात् मयं तत्प्रत्यक्षम् ? ज्ञा समान जोगवना का मनुपपाश] उक्त रीति से पान को प्रभाव दशा में शानविशिष्ट आमा के मानस प्रत्यक्ष की उपपत्ति करने में एक पाधा और घह था कि 'घटमः जानामि म प्रत्यन में शान में वर्तमानत्व का भान दाना है, किन्तु यघि यह परमान, शान के नाश के पाद होगा तो इसमें प्रान में चर्तमानस्य का भाम न हो सका।। ८ ई * "उक्त प्रत्यक्ष मान में शो पर्तमान मासिन होता है. यह वनमानक्षागत्तित्वमा नहीं हो सका, मों कि क्षपा के अनीरिय होने से प्रत्यक्ष में उसका भान सम्भय , किन्तु वर्तमानकाल पुस्तित्वरूप है. मोर. वर्तमानकालनुत्तिन्य मालकाल को लेकर उस क्षण में विद्यमान भी शान में सम्भव है. भर उफ मस्या में उस क्षण में अविद्यमान भी शान में घी मानकालमित्यरूप धर्ममानस्य के भाग गं बाधा नहीं है। य ह कि मतीन्द्रिय पदार्थ भी शान हो का प्रत्यक्ष का विषय होता है, अनः उक्त प्रत्यक्ष में बान में वर्तमानमा सय रूप वर्नमानन्य काही भान होता है, मान के उस क्षण घिद्यमान न रहने से अनुपपन्न है। स्थलकाल को लेकर वर्तमानाय फा पपादन बुद्धिसंगत नहीं है, क्योकि ये यतमानत्व के चिर्पीन याल भी सम्भव होने से इस प्रकार का वर्तमानन्त्र सच्यावनक है । यार की . 'प्रत्यक्ष में नाम दारा अतीन्द्रिय पदार्थ का भान मानने पर भी क्षण के भाने का उपासन न किया जा सकता फोकि क्षण का शाम दुबैट है . :I: यह कहना है, क्योकि राशन मादि से क्षण का ज्ञान सुसम्पाय । लाने का आशय यह है कि संसर्ग शन् का अर्थ होता है 'यिोग्यावशेषणभिन्नत्वे नि विशिष्यत्ययननयोगप.' अर्थात् ओ विशेष्य पयं विशेषण में भिन्न होते हुये विशिष्ट प्रत्यय के उत्पादन में योग्य दो उर्म 'संसर्ग' अर्थात् संबन्धकहा जाता है, जैसे घटभूसन्म का संयोग घटसप विशेषण और भूतलरूप विशेष्य से भिन्न होने टुये 'विशिष्ट भूगलम्' इस विशिष्ट प्रत्यय का जनक होने से घट-भूतल का संसर्ग है। पक्षण में उत्पन्न होने वाले पापी में योगाय एकक्ष गोभयत्व संसर्ग होता है। यह भी संसर्ग है उक्त लक्षण से संगृहोत होने से संसर्ग शप का मर्थ है, थतः संसर्ग शब्द के अर्थ विशेष योगपन का घटक हाने से क्षण भी संसरी शम्द से क्षध है. और अपक्षाण का जान सम्भय है न उसके द्वारा प्रत्यक्ष में उसका भान होने में कोई बाधा न होने से उक्त प्रत्यन में पान में धनमानक्षणप्तित्व का डी भाभ उपपाननीय है। गाय घा' अनुभव में व्यवपापल्लक्षिानुपति शान के परमका पतापक्ष में एक यह भी दोष है कि इस पक्ष में मयि घटना नम् इस प्रत्यक्ष की टपपत्ति नहीं की जा सकती, क्योंकि इस प्रत्यक्ष में घशानरूप ठपण साय विदोन है, अतः विशेषय के रूप में उनका प्रत्यक्ष होने के लिये प्रत्यक्षकाल में उसकी सना आवश्यक छ । या नही कदा जा सकता कि - मधि घरमानम्' इस प्रकार घटमाम का प्रत्या ही नहीं होता कि अर्ब घटनामवान' इस घटनामविशेषण
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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