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शास्त्रवासिमुबाय-सबक लो० ८३ .
उजनकत्वन्यात्वाम् । न च संस्कार-हत्यापनमतचाची म्यभिवारा, अनागतगोचरसाक्षात्कारमनप्रस्वासश्यजन्यप्रत्यक्षविषयतावास्थास्वाव, वस्तुतो लौकिफप्रत्यक्षविषयवाया। प्रत्यक्षजनकत्वन्यासत्यात्, तदजनके स्वस्मिन् सौफिकसाक्षात्कारविषयवान स्थाविधि जनकता को न्याय है अतः प्रत्यक्षजानकतारूप पापक के प्रभाव से प्रत्यक्षविषयताप पाप्य के अभाध को सिणि समान में अनिवार्य है। याद यह फा करें कि-"सोऽय घटः' इस प्रत्याभकारूप प्रत्यक्ष में 'सा' शब्द से तचा का मान सूचित होता है। तत्ता का मर्ष होता है तद्देश सस्कारसम्बन्ध, वदेश के दूरस्थ और तत्काल के भतीत होने से सद्देश-तत्कालसम्बन्धरूप तप्ता के साथ इन्द्रिय का बौकिकस्मिकर्ष न हो सकता मतः सञ्चाविषयक वसंस्कार अथवा सत्ताविषयकस्थति से उक्त प्रभिशा में तसा का भाग होता है। अतः इन्द्रिय से भसनिक पई अरु प्रत्यभिक्षा के क नम्रा में खत प्रत्यभिशारमक प्रत्यक्ष की विश्यता समे से प्रत्यक्षविषयता में प्रत्यक्षशनकता को म्यापित व्यभिचारित है. मतः बाम में प्रत्यक्षजमकरवाभाष से प्रत्यक्षविषयस्यामाप का सात अशफ्य,"-तो इस का उत्तर यह है कि प्रत्याविषयतामात्र में प्रत्यक्षजनकमा की व्याति न मान कर अनागत पदार्थ के साक्षात्कार को उत्पन्न करने पालो प्रत्यासक्तिइन्द्रियन्निकर्ष से अजय प्रत्यक्ष की लिपगना को प्रत्यक्षतामा ग्याप्य मानने से पाक भिधार नहीं जा सकता, क्योंकि 'साऽयं घर' पा प्रत्यक्ष सताविषयकस्मरणरूप शामलक्षणसन्निकर्ष से उत्पन्न होता है और हानलक्षणाग्निकर्ष थमागत घटादि के साक्षात्कार का अनक होता है, क्योकि 'घदो मविपति-घटो पर्नेमामबागभावप्रतियोगी इस प्रत्यक्ष में भाषी घद का भाग 'भावी घर के मानक कानलक्षण लन्निकर्ष' से ही होता है, और भाषी घर का ज्ञान घटत्यका सामान्य लक्षणमस्यासत्ति से होता है अथवा 'श्रयं घटः घटपूधयी, घटत्वात् पतबरपूर्वोपनिषत्वत्-पर घट घट का पूर्ववती है, पाकि घट है, जैसे पस घट से पूर्व डरपान घट" इस अनुमान से होता है। मतः प्रत्यक्ष में 'अनागसमोचरसाक्षात्कारजमकप्रत्यासस्य तपस्य' विशेषण के देने से तमा में उक्त प्रस्थासशिन्य उक प्रत्यभिधारमा प्रत्यक्ष की विषयता होमे पर मो ताशप्रयासस्वसम्यान रपक्षविषयक्षा में प्रत्यनजाकता को व्याक्षि मधुण्ण है, विपुलोप्रत्यक्षवादी 'घटम सामामि' इस घटप्रत्यक्ष में हान पर्व हाता का मानधनलक्षणसंस्निकर्ष से नहीं मामते मग यार प्रत्यक्ष अनागतगोषरसाक्षात्कारजवक प्रत्यासति से अमन्य है। इस लिये इस प्रत्यक्ष की विषयता प्रत्यक्षजनकता की व्याज्य होने से प्रत्यक्ष के मजनक शाम में नहीं सफली । वास्तविक बात तो यह है कि-लौकिप्रत्यक्षविपयता-थलोशिकान्यनत्यस विषयता प्रत्यक्षामकता की व्याप्य होती है, 'सोऽयं घटः' या प्रत्यभिज्ञा तसा 'श में बलौकिक होने से लोकिकान्य नहीं है अतः उस प्रत्यक्ष की विषयता उस प्रत्यक्ष के अजमक में रहने पर भो भिनार ही हो सकता। त्रिपुटीप्रत्यक्षवारी के मन में 'घटमहं जानामि' पद घटप्रत्यक्ष किसी भी अंश में अलौकिक नहीं माना जाता, अतः इस अलौकिकाम्य प्रत्यक्ष की विषयता उस प्रत्यक्ष के हनक बाग में नहीं हो सकती।