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रूपा कसोफा. यदि वि. . भास्वविशिष्टयोधात सत्र भ्यभिचारयारणाय स्वप्तमानवित्तिवेद्यभिमविशेषणशानत्वेन विधिपृयुद्धी हेसुस्वाद न दोष इति भाग्यम्. पद्धि येन बिना न भासते तत्-तसमानविनिवेधम्-तद्ग्रहसामग्रोनियतसामग्रीकरवमित्यर्थः न च सामाऽभाने भात्माऽभानमित्यस्ति, तदमानेऽपि 'अई सुखी' इति भानस्य सर्वसिद्धन्वात् ।
अपि च, प्रत्यक्षविषयतायामिन्द्रियसन्निकर्षस्य नियामकत्वान् कथं तदनाश्रयस्य स्वस्य प्रत्यक्षल्बम् ? कथं वा प्रत्यक्षाऽजनकस्य प्रत्यक्षविषयत्वम् । प्रत्यक्षविषयतायास्तुन का काम पूर्य में न रखने पर भी अमानविशिए का बोध होता है मतः उक्त गोष में तत्प्रकारक शान के प्रति नविषयकशान को कारणना में कामिनार हो जाता है, इसलिये इस भिनार के पारणार्थ विशिशान में इसी विशेषण फैजान को कारण मामा माताजी विशेष्य का नुस्यवित्तिवेध न हो | घरी विपोषण विशेष्य का तुल्यवित्तिवेद्य होता झिसके भाग के विना विशेष्य का भान न हो, अर्थात जिस विशेषण के मान की सामग्री विशेषनाशकसामनी की नियध्यापक हो । घर के भान के बिना भी भूतल का भान होने में घटनाहकलामन्त्री भूभालनाटकमापसी की मियत मी है, प्रतः घड भूतल का मुन्यपिनियन नहीं है इस लिये पटनान प्रायशिरभूतल के शान का कारण होता है। अमावस्या के भान के धिना प्रभाव का भान नहीं होता, अतः अमापर प्राहकसामग्री अभाषाहकलामन्त्री की नियत है, इमलिये सावध भमाच का तुरुपवित्तिवेच अनः अभावस्वतार अभावयपिशिनाभाय के मानका कारण नालों होता, भारमा का भी मान शानमान के बिना नहीं होना । अतः माननाहकलामन्त्री पाश्मनादकलामग्री की नियम होने से ज्ञान भी आमा का तुल्यषित पेय है, इसलिये शामान भी ज्ञानविशिष्ट आमा के पान में कारण न होगा, फलतः पूर्व में शाम के अज्ञात होने पर भी भानप्रफारक मारमयिशेयक 'घटम सानामि' इस शानके कोने में कोई पाधा नहीं हो सकी" नो यह नीक नहीं . क्योंकि ज्ञान भाम के यिना भी 'भाई सुखी' पस रूपमें मास्मा का भान होने से शामभान के बिना आत्मा का भान नहीं होता' या धन सिद्ध है। अतः साननाशकसामग्री आत्मन्नादफसामग्री की नियत - होने से ज्ञान मारमा का तुष्यचित्तिय नहीं हो सकता, इसलिये मानविभिआरमशान में बानज्ञान की कारणता शमिघाय होने से मान के स्वयकाशस्य पक्ष में उसके बुर होने के कारण उस पभ में 'घटमाई जानामि' इस शान की उपसि का असम्भय है।
इन्द्रियसनकर्ष फे अमात्र में ज्ञान प्रमश से ?? शाम को यमाहा मानमें के विरुद्ध पक बात यह भी है कि-'इन्द्रिय समिकर्ष प्रत्यक्षषिषयता का नियामक होता है, घोर शाम में चक्षु भादि का सन्निकर्ष नही होता, अतः उसमें चाभुषादि शान की विग्यता सम्मघ महोने से घर पठामि के समान प्रश्पक्ष कैसे हो सकता है" दुसरी बात पर कि-घर के साथ यश्च का सन्निकर्ष होने पर उत्पन्न होने वाले प्रत्यक्ष के प्रति व यशामकान तो जमक होता नहीं, फिर पा उस प्रत्यक्ष का बिग्य कैसे हो सकेगा। क्योंकि प्रत्यक्षविषयना प्रत्यक्ष