________________
२४
शास्त्रषाससिमुल्याए सरकार ठो० ८०
उक्तप्रत्ययो न प्रमा, इत्यामरते . .
भ्रान्तोऽहं गुरुरिष्येष सत्यमन्यस्त्वसौ मतः ।
व्यभिचारित्वतो नास्प गमकावमयोभ्यते ।।८०॥ 'आई गुरु' इत्येष प्रत्ययो प्रान्ता गुरुत्वाऽनाश्रयेनत्यवत्पात्मनि गुरुत्वावगानात् । यद्यपि घटस्यैव कदाचित् भ्रमविषयत्वेयात्मनो नानुपपत्तिः, तथापि तत्मस्पयाडमाचे प्रमाणानाशास्वादसतम्यातियानत्वेनाऽलीकत्वमस्येत्यभिमानः ।
तप्रोग्यते-सत्यम्, उक्तप्रत्ययो भ्रान्त एव तु पुन:, स्मो-अमारूपोशम्पत्यय: अभ्यः 'भाई गुरु।' इत्यायतिरिक्ता 'अहं माने पर मुखी' इत्यादिरूपः, मतः अङ्गीकृता ।
भयास्प अहम्प्रत्ययजनकोपयोगस्य, व्यभिचारित्वतो-भ्रमजनकत्वात गमकरय-प्रमाणत्वं नेति-उभ्यते ।।८०||
कारिका.८० में महमश्यय को भ्रम पताकर उसे माम्मा की सिसि से प्रतिफल बतापा गया है। कारिका का अर्थ इस प्रकार है
(प्रत्यय में भ्रम की साशंका) "महम्मत्यय को गामा के अस्तित्व में साक्षी नहीं माना जा सकता । 'मई गुरुः' पर मामस्यय गुबरम के अनाथय अहम आरमा में गुरुत्वको विषय करने से भ्रम, मोर भ्रम से विषय की सिसि नहीं मानी जानी । इस पर यह शंका की जा सकती है
कदाषित फिमा भ्रम का विषय घटोने पर भी उसका अस्तित्थ भनुपपन्न मही होता, उसी प्रकार भवं गुमस बम का विषय आमा होने पर भी मारमा का मस्तिस्व अनुपपा सही हो सकता, अतः उसे भ्रम का विषय बसाना व्यर्थ "-तो इसका उत्तर पहहै कि मईप्रत्यय ही मान्मा का प्राहक होता है, फिर जब षही भम हो गया, सब भात्मा का प्राइक कोई अन्य यथार्थ प्रत्यय होने से उसे असत्यपानि से माम माममा होगा, फलतः पह असम्पयासि से प्राहा आकाशी पुण शादि के समान महीक (मिथ्या) हो जायगा, मतः गात्मा के मलीकत्व का मागदा होने से 'माई गुमः' इस मतीति को श्रम बताना अनात्मवादी राशि से अत्यन्त सापक है।"
इसके उत्तर में मलकार का कहना है कि यह सच है कि 'मह गुषः' यह प्रतीति अम है, किन्तु इससे मिल भी माम्प्रत्यय ६ जो पधार्य होने से भामा के अस्तित्व में लाक्षी हो सकता है, पा, महमर्थ आत्मा में हान-मुख आधिको प्रहण करने पाशा जाने, म सुत्री' प्रत्यादि प्रत्यय । ये प्रत्यय यथार्प इस लिये है कि हम में हामाधि के आभय भात्मा में सामादि का मान होता है। इनमें किसी धर्म का स्वशून्य में भाग नहीं होता, अतः ये प्रत्यय आत्मा में प्रमाण हो सकते है। यदि को कि-मई गुवा' स भ्रम का जनक होने से महम्मस्यय के उत्पावक उपयोग में मायग्यभिचार तो सिसीनाता, फिर कौम कह सकता है कि वस उपयोग से उत्पन्न होने वाले पूसरे म प्रत्यय आम न होकर यथा बी होगे, अतः अन्य अहंप्राययों में भी प्रमस्थ की शंका होने से अप्रत्यय को भासा का साक्षी काला ठीक नहीं है तो इसका सर अगछी कारिका से स्पष्ट करते हैं ॥८॥
E