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________________ रूपा १० का बि. पि. २५३. विभिस्तबष्टया तदभावसिद्ध, प्रत्युत पुनधनाप्रभावापधारणाकछोकविकलो बहु विक्री शेन्, तदा पुत्रादिसच्चे चानुपालन्यभिचाराद् नार्थाभाबसाधकम् । अथ सन्निकटेऽधिकरणे पुत्रायत्यन्ताभावग्रद्देऽपि तदवसाग्रहाद् न शोक इति वेत् ? तथापि पूधाधुपलम्भहेतुचक्षुराधनपलम्भेन तदभावान पुत्राधनपलम्भेन परावृत्तस्य तस्प सूढता स्यात् । तदिवमुक्तम् तद् निर्गको पूलो पदारईशि" इति । भय चक्षुरादिसंभावनामच्चाद् न तदनुपलब्ध्या तदभावसिरिनि चेत् १ तात्मनोऽपि सम्भावनासवाद न तदनुपालभ्या नवभावसिद्धिरिति परिभाबनीयम् ॥७९|| लब्धि न होने से उसका प्रभाव माना जायगा, तो प्रायु आदि का भी अभाध हो भागमा पयोंकि स्वश इन्द्रिय से अथवा साशा विलिंगा रनुमान से उसकी सिद्धिदौमे पर मी बश्च से उसकी भनुपरग्धि है। दूसरी बात यह है कि अंकली अनुपलब्धिको अर्थाभाव का साधक भी नहीं माना जा सकता, क्योंकि यदि अनुपलधि अकेली आर्य के प्रभार की सधक होगी नो घर से बाहर गना चाकि अपने घर में वापस न लौट नका, क्योंकि गृह में विद्यमान पुत्रदिवारा बाहुः गये धार्याक की पसचिन देने से उस मभाध सिद्ध हो जायगा । फिर जब पा होगा ही नहीं त घर पापाल कमे लोट लकेमा.. इसी प्रकार माहर ममे भाषाक को गृह में स्थिति पुत्राधि की उपाधि न होने से पुरादि का सभाम सिज हो जायगा, अत: पाक को पुषादि के शोक से विकल हो रोमे को विवश होना पडेगा। और यदि यह माने गे कि पुत्रादि की उक रीति से अनु पलब्धि होने पर भी पुदि रचनाबी, उसका अभाष सिद्ध नहीं होता तो यभिचार होने से भनुपलब्धि को म भाव की साधकता सिद्ध न हो सकेगी। ____ यदि यह कई कि-"दिर्शन पाक को समिकच स्थान में पुनि के भयन्ताभाव का की शान होता है, उसके ध्वंस का काम नहीं होना, अतः उसे छोक से विकल हो रोने का प्रसा नहीं हो सकता" तो वह ठीक नहीं है कि उसोप का परिहार आने पर भी यक दोष अपरिहार्य होगा कि पुत्रादि-प्रत्यक्ष के जनक चक्षु आदि की मनुपलरिय से चक्षु आदि का प्रभाय सिद्ध हो जाने से पुत्रादि की उपलब्धि न होने के कारण घर पर लौटे चार्वाक को पुत्रादि-मार्शम कमिनमोह का शिकार होना पडेगा, इन सय कारणों से चार्वाक का घर को पापस लौट सकना सम्भव न होगा, जैसा कि कहा गया है'अनुपलब्धिमान संभाष का मादक होने पर घर से बाहर गये भाषोक का घर को वापस लौटना सम्भव न हो सकेगा" | यदि कहे ... जिस धम्तु की सम्भावना नहों होती चली की अनुपलब्धि पके अभाष पा गाधक होती है. यह नियम दिः पशु दि के मस्तित्व की सम्भावना है अतः अनु गाय को अनुपनि से वक्षु भावि का अभाव सिहोने से उपदीय नहीं हो सकना" - सावन गामवास के अनुकूल नहीं क्योंकि बान्मा के भो अस्तित्व को सम्माषना होने से मात्मा की अनुपलाग्ध से थाम्मा के अभाव की सिधि महीं हो सकती ॥७९॥
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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