________________
स्मा का टोका पहि.जि. मतभावतः अनादिनिधनत्वात, परलोक्यपि युक्तमागानुसारिभिः: उपपतिसहिताऽऽगमातुहोनातिभिः विज्ञेयः । आपत्रारीरधर्माणामन्यवहितपर्ववर्तिचैप्रक्षरीरधर्मानुविधायित्वात् पुत्रशरीरे तया दर्शनाद, अनुगतकाणशरीरासदपा तापभागाश्रयस्य परकरसिद्धे। । न च पटे घटनन्यत्वस्येव शरीरे शरीरजन्यत्तस्पाऽपि न नियम इति वाच्यम्, आत्मनः क्रियायवेन बेधारूपनरिफयानियामकशरीरत्वस्याऽऽधशरीरहेनुर्मणि सी. कारादिति ||७८॥ अनाइ पर
सतोऽस्य किं घटस्येव प्रत्यक्षेण न दर्शनम् !
मत्स्येव दर्शनं स्पष्टमईप्रत्ययवेदनात् ॥७९॥ भारमा है। सतत विद्यमान होने से अर्थात् अम्मा और मविनाशी होने से यह परखक मामी भी होता है। इसकी परलोकमामिता युक्तियों से विभूषित आगमशास्त्री से सब पत होती है। माशय यह है कि -'किसी नवोत्पन्न शरीर में जो धर्म सर्वतः प्रपम उपलक्षित होते । वे लस शरीर के निष्टतमपूर्षयन्तिशरीर के धर्मों से ही उत्पन्न होते हैं यह नियम क्षेत्रादि के कुमारावस्था के शरीर के अनन्तर उत्पन्न होने वाले उसके युवकारीर में होने से सभी शारीरों के विषय में मान्य है। अतः इस नियम के भनुलार यह मानना जरूरी है कि मनुष्य का सम्मसमय बी शरीर प्राप्त हुआ है उसके पूर्व भी हाई उसका शरीर अवश्य होगा जिसके धर्मों से जामकाल में उसे प्राप्त नये शरीर में प्राथमिकधी की उत्पत्ति होती है। इस प्रकार मनुष्य के नये सन्म से पूर्व जो उसका शरीर
सिता है उसे जन परिभाषा में कार्मण शरीर कहा जाता है। कार्मण शरीर का स्वरूप है कर्मरूप में परिणत पुनल(परमाणु)वष्यों का समूह । प्रत्येक जीव अनादिकाल से इस शरीर संतति से तब तक बैंधा रखता है जब तक इसे मोक्ष प्राप्त नहीं देता । इस कामगशरीर से उत्पन्न होने वाले मागका आश्रय देने से ही आरमा परलोकमामी होता।
यदि को कि-'असे घट में पटजन्यस्य का नियम नहीं है उसी प्रकार शरीर में शरीरज
का भी निपम मही, भतः मनुष्य के नवजात (ओवारिकापल शरीरखे उसके कामेषशरीर की सिधि नहीं हो सकती-ई मह उचित नहीं, क्योकि मषज्ञात स्थल शरीर से पूर्ष यदि कोई शरीर नहीं माना जायगा तो मशरीर होने से मामा में यह किया दी उत्पन्न होगी जिसके द्वारा पा मावी नूतन स्थूल शरीर को बना सके। फलतापमान शरीर मिरात्मक होने से गिरको जायगा। अतः जिस श्रीवकर्म से इस शरीर का काम होता है उसे इस शरीर में जीवस्थिति के अनुरुल जीर्षाकया का सम्पापा घरीर मानना आवश्यक है।
[मात्मा का प्रत्यक्षदर्शन क्यों नहीं हासा !] कारिका ७२. में मास्मा के विषय पठाये गये पक और प्रम का समाधम किया गया है । मम यह है-'मारमा पदि शरीर से भिन्न पक भावात्मक वस्तु पटके
या. था. १