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स्या. ६० टीका र हि. वि.
'नीलाऽऽरोपविनिष्टसोजसंसर्गामास्तम' इति शिवदित्यः । तदपि न, नीला. कप अर्थ की उपस्थिति कारण होती है, अतः नीलामक अर्थ जब पुलिक मील पम्प से उपस्थित न होगा तब तक उस में तमापवा का शाबोध भी न हो सकेगा, इसलिये पुस शानयाध के विहार्य नीलस्तमः इस प्रयोग का मौखिस्य कवीकार करना मावश्यक बाजायगा।
न तमः' प्रयोग में नीलपद विशेष्यवाचक है। ____ यह कई कि-"उक्त प्रयोग की भापति तो नीलरूप को वियोण्य मोर सम को विशेषण मानने पर होती है, अतः पेसा न मानकर तम को विशेष्य और नील को उसका विशेषण मान लेना चाहिए । पेसा मान लेने पर उक्त प्रयोग की भापति नही हो सकती क्योंकि जिन विशेषणपदों में विशेष अनुशासन द्वारा मियालगता का निर्धारण नहीं होता ये उत्सरी से विशेष्यवारकाव के समानसिक होते है पेसा नियम है इसलिये प्रकत में विशेष्यवान्त्रक समापन के नपुंसक होने से विशेषणधायक नीलपत्र भी नपुंसक ही होगा । अतः 'नीलस्त: योग युक्त मनोकर पलंगा" ही प्रयोग होगा ।" तो यह टीक नना है, क्योंकि नीलसामान्य का अभिधायक होने से नील पद की विशेव्यपरक पानना ही अमित है। माशय यह है कि विशेषण यह होता है जो व्यवच्छेदक हो और विरोध पर होता है जो व्य य हो ।' सामाग्य का विशेषद्वारा व्यवचकेव होना ही स्वाभाविक है। नीमपदार्य बहुषित्र, तम अगमें एक है, अतः तमकर विशेष से नोलकपसामाग्य का स्यबहेव करने के लिए नौल को विशेष्य और तम को विशेषण मामना ही उचित है।
यदि यह कहें कि-"विशेय-विशेषणमाष के सम्बन्ध में शास्त्रों में म्यमकानुसरण माना गया है, अतः जिम पदार्थों में बामेव प्रतिगदनीय हो उनमें दानुसार किसी को भी विशेष्य और किसी को भी विशेषण माना जा सकता है। इस स्थिति में अब नील को विशेषण माना जायगा तब तो भील तमः' यह प्रयोग ठोक है पर जब भील को विशेष्य माना जायगा तब 'नीलस्लम इस प्रयोग की भापति होगी-तो यह ठीक नहीं है, कि विशेषय-विशेषणमाथ में कामधार को बहो मान्यता है ! विशेष्य-विशेषजका में प्रतिपादनीय अर्थ एक दुसरे के व्यभियागी होते है-जैले 'पण्वितजनः' और जैनपचिता' पण्डित अनेतर पण्डित में जैन का पर्ष जैम परिहतेतर जैग में पण्डित का व्यभिचानी है अतः इमामों में विशेषण-विशेष्यमात्र वक्ता की इच्छा पर आधारित है। किन्तु प्रशस में अमोल नम के न होने से मम नोल गाभिमारी नहीं है। मतः पहा सामान्यका होने से नील का विशेष्यता और विशेषरूप होने से नील को विशेष णताही उचित है।
शिवादित्यकृत तमोलमण का निम्मन] शिवादिस्य का कहना है कि 'नीसारोप से घिशिर तेशर्ससांभाष नम । भाण्य पह कि-"अभिजीलासेप को ही तम कहा जायगा तो नीलीदव्य के संपर्श से मालो
स्थ वस्त्रावि में भी मीलरूप का भारोप कौमे ले उसमें भी तम का व्यवहार प्रसक होगा और यदि कंवल तेजसमभाव को तम कहा जापगा तो भाकीक