________________
स्पा० क० टोका - वि०
MINI..
AAMV
२३७
सममानने फज्ञानामात्रस्याऽसंग्रहात् । अत एव आलो [क]काद् गर्भगृहं प्रविशतः प्रथममालकाय नीलं तमः' इति श्रीः । तदुक्तम् अप्रतीतादेव प्रतोतिश्रमो मन्दानाम्' इय्यः । तदप्यसत् 'तमः पश्यामि' इति प्रतीत्या तमश्वानुषात् ज्ञानाभावस्थ चामात्वात् निमीलितनयनस्य न न तमःप्रतीतिरस्ति किन्त्वर्थान्तिरप्रतीतिरेव अन्यथा 'गेहे तमोऽस्ति ना " इति संशयानुपपतेः । गर्भ च नमः प्रत्ययो अप पत्र, आछेाकज्ञानप्रतिबन्धको मस्य तत्र स्वीकारावश्यकत्वादिति दिक |
,
उस देश में उस विशेष्यता वयं उक्तप्रकारता दोनों हो सम्बन्धों से कामाव रहेगा, वैसी ही स्थिति में वां नमःप्रतीति पत्र तमोव्यवहार होगा ।
प्राभाकरों का कहना है कि "म के आलोकदर्शनाभावरूप होने पर भी नीलिमा के स्मरण एवं उक्त दर्शनाभाव के साथ नीलिमा के असंसर्ग के अज्ञान से उक्त अभायरूप राम में 'रामो मील" इस व्यवहार को उपपत्ति हो सकती है।
अब मनुष्य पार के तेज आलोक से गृह के भीतर प्रवेश करता है तो सहसा उसे यह स्थित शास्त्र आदर्शका दर्शन नहीं होता और वह सर में बाद पडता है 'अत्र अन्धकारः यहां तो है। इस व्यहार से भी यही सिद्ध होता है कि आलोकदर्शन मात्र ही तम है अन्य यदि मालोकाभाव तम होता तो आलोक सो वहाँ हे डी. फिर आकास का कैसे हो सकता था। यदि घर मध्यरूप होता तब भी भलोक से गृह में प्रवेश करने पर ना ही उसका ठीक उसी प्रकार न होता जैसे यहां स्थित अन्य दस्यों का कालदर्शन नहीं होता। इस प्रकार आलोकदर्शनाभाव को नम मानने में युति की अनुकूलता का दे कर प्रभाकरानुयायां कहते हैं कि जो लोग शाळांकहित स्थान में नम की प्रतीति स्थी कार करते हैं ये मधुद्धि है क्योंकि वे मालोक की अपनीति को ही तम की मनील माम कैसे हैं ।
| प्रभाकरमत का निरसन
विचार करने पर प्राभाकरों का यह मत सीन नहीं प्रतीत होता क्योंकि 'तमः पश्यामि' इस अनुभव अनुरोध से हम का चाषमत्यक्ष माना जाता है, किन्तु नम यत्रि आलोकदर्शनाभावरूप दोना तो दर्शन के बभ्रुम न होने से आलोकदर्शनाभावरूप राम का भी जन्य ज्ञान न हो सकेगा, फलतः 'नमः पश्यामि' इस सर्वसम्मत अनुभव की उपपत्ति न हो सकेगी। यदि केन्द्र कर लेने पर भी राम की प्रतांति होती है भातम का मात्य अमान्य है'' यह ठीक नहीं है, क्योंकि अब करने पर तम की प्रतीति का शीना प्रामाणिक नहीं है भध्या आंख म्य करने पर भी पवि रूम की प्रतीति मानी जायगी, तो आँख बन्द कर घर में जाने वाले को 'ते नमः अस्मि घर में अन्यान इस प्रकार अधिकार का सन्देद न होगा क्योंकि
आफ
रहने पर भी उसे नम का ग्राम हो सकता है । अब प्रश्न हरु जाना है कि यदि आलोकमा म नहीं है किन्तु आका भाव तम है, गधा नम एक अतिरिक्त द्रव्य है. तब आलोक से युद्ध में जाने परम