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________________ श शास्त्रषात्तासमुच्चय-स्सबक लो0 0 "तमा तेजः]प्रतियोगिफाभावेनैर [तेजो तमोज्यवहारः, तत्र तत्तेनोमान प्रतिबन्धकम्" इति शेषानन्तवचनं त्वत्यनादरणीयं स्पष्टगौरवान, पवर्तव्यज्ञाने सति सत्या वेच्छायां व्यसारेऽधिकानपेक्षणाच्येति दिक् । ___प्राभारास्तु - तेजोमानाभाव एव तमा, 'नीलं तम' इति धीस्तु स्मृतनीलिम्ना हो सकेगी। 'उस्कृष्ट आलोक का भभाव सन्धकार है' यह भी नहीं कहा जा सकता क्यों कि अन्धकार के प्रतिरूपों भालोक को उत्कृष्ट कहने पर अबकार उस की उपेक्षा अवश्य ही अपकर होगा, और मय वह अपए होगा तब उसकी अपकृष्टता से ही उस में अध्याय की सिजि अनिवार्य हो जायगी क्योंकि उत्कर्ष सजातीय में ही माम्य होता है। पानी का कहना है कि मम्मतियोगिक अमाव ही सम है. मालोकयान् देरा में स्किचिस् सेम का अभाव होने पर भी तम का व्यवहार इसलिये नही ताकि सतत् ते काबान तय के व्यवहार का प्रतियम्धक है'- किन्तु इस पक्ष में तमोग्यषहार में विभिन्न तेज के शान का पृथक् पृथाह प्रतिबन्धक मानने के कारण भतिगौरव स्पर रहने से यह पक्ष क्याम्य है । दुसरी बात यह है कि व्यवहतेय का शान और व्यवहार को इच्छा रहम पर ध्यत्रहार होने में किसी अन्य की अपेक्षा नहीं होती भस: तेसोयुक्त स्थान में अब तेजामियोगिकंगमावरूप सम का गान और तमोप्यवहार की बलातय तमोग्यवहार में किसा अन्य के भक्षणोय नहाने से तसस्नेश के जानाभाष को भी अपेक्षा किये मिना तम का व्यवहार होमा को बाहय । पर उक्त व्यवहार न होता, मतः तम को दृश्य पथ तसत्तेमासरपकाल में उसका अलख माम कर तेजोयुवा देश में तमोग्यवहार का धारण करना ही उचित है। [आलोकज्ञानाभाव ही तम है प्रभाकरमत] प्रभाकर के अनुयायियों का कहमा है कि तेजोवाम का प्रभाव हो नम है। इसका भाशय यह है कि मिस स्थान में मनुष्य को आलोक नहीं पीता, पहां वा तम का उपहार करता है, इससे सिद्ध होता है कि आलोकदर्शन का भायनी तम। भालोकर्शनाभाय का अर्थ है--स्थीयमालोकनिधभकारतामिपितविशेष्यता, एवं पी. समालोकठियहोयसानिमितभायत्मसम्वन्धानकारता-जन टोमा समय में किसी भी सम्बन्ध से दर्शन का ग होना, गर्धास् उक विशेष्मता उक्त प्रकारता-पताम्यसरसम्बन्धाग्छिन्नप्रतियोगिताकदर्शनामाव । मिस देश में 'आलोकवान अये देश' इस मंकार मालोक का दर्शन होगा, उस देश में उक्त विशेष्यतासम्बन्ध सेवाम रहेगा क्योंकि उक्तदर्शन में भालोक प्रकार भोर देश पिक्षिय, अतः उक्त पिपतालम्बन्ध में 'स्व' शब्द से उका र्शन को लेने पर उक्त दर्शन स्थायालोकनिष्ठम कारतानिक पितषिशेषतासम्बाध से देश में रहेगा और जब नेश में 'अव देहो थालोकः' इस प्रकार मालोकदर्शन होगा, तप यह दर्शन उक्त प्रकारतासम्बन्ध से देश में रहेगा, क्योंकि इस छन में मालोक विशेष्य है और देश उसमें आधेपक्षासम्बन्ध से प्रकार है, अतः एक प्रकारतासम्बन्ध में 'स्व' शाद से इस दर्शन को लेने पर यह दर्शन देश में उक्त प्रकारतासम्पन्ध से रहेगा, जिस देश में अब उक्त दर्शनों में कोई भी वर्गम रहेगा, तब
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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