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________________ शास्त्रवास समुच्चय- स्तचकः १ छो० ७७ एवमपि घटाभावामावयोरुभयोः सन्निकर्षे घटाभावांशे प्रतियोगिविशेषितस्य पदाभावदशेषितस्य समूहालम्बनस्य प्रसात् किं च. एवमिदन्त्वादिनाभावप्रत्यचं न स्यात् न स्थाच 'अभावप्रतियोगी घटः इत्यादिः साध्ययत्यक्षेष्वपि पृथक् कारणत्वकल्पने जातिगौरव | अभावत्वप्रकारकप्रदाय भावविषयकप्रत्यक्षं घटत्वा दिना घटादिज्ञानस्य हेतुत्वम्, पटाभावत्वेन च भूतले न घटाभावादिज्ञानम्, नत्र पटाभावस्यैवापात् इत्यालोकज्ञानं विनाऽपीदन्त्वेन तमाप्रत्यक्षं नानुपपन्नमिति चेत् न 'घerद् भूतलम्' इति ज्ञानोत्तरं 'अभाववत् भूतलम्' इति ज्ञानप्रसङ्गात् तादृशाऽसंसर्गास्थाssपादकस्य सच्चात् । किं च परमभावप्रत्यक्षे प्रतियोगिज्ञानापेक्षायां चिना प्रतियोगिज्ञानं जायमानं तमस्त्वप्रकारकं तमः प्रत्यक्षं तमसो मात्रत्वमेव साधयतीति fearfभानमिवं देवानांप्रियस्य । २२४ सन्निकर्ष से घटाभावोऽभावश्च समूहालम्बन की आपण उचरपक्ष | विचार करने पर पूर्वोक पक्ष उचित नहीं प्रतीत होता, क्योंकि इस पक्ष में भी यह शेष है कि जब घटाभाव और पठाभाव के साथ इन्द्रियसन्निकर्ष के समय घट का काम है और घट का ज्ञान नहीं है, तब उस सन्निकर्ष से प्रभाव में तो रूप प्रतियोगी को विषय करने वाले और पटाभाप में प्रतियोगी को विषय न करने वाले 'घटाभावः अभावद्य' इस प्रकार के समूलम्बन प्रत्यक्ष की मापति होगा क्योंकि पक्ष प्रत्यक्ष भी घटा भाषांश में इन्द्रियसम्रा विशेष सालिकर्ष के कार्यसाय से भाकात है, अतः उत सन्निकर्ष इसका आपादक हो सकता है । | दन्त्वादिरूप से अभावप्रत्यक्ष न होने की व्यापत्तिj इसके अतिरिक्त दूसरा दोष यह है कि इम्य गादि रूपों से तम का 'वं तमः' याकारक प्रत्यक्ष तथा समावपतियोगित्वेग घट का 'सभाषम थियोगी घटः स्याकारक प्रत्यक्ष न हो सकेगा, कयोंकि हम प्रत्यक्षों में अभाव में प्रतियोगिता से कोई भी प्रकार होने से इन में मम्बन् विशेषता सन्निकर्ष कारण न हो सगा । यदि इनकी उपपत्ति के लिये इनके प्रति उन सन्निकर्ष को पृथक कारण माना जायगा तो अतिगौरव होगा। यदि कहें कि - "अभाव प्रत्यक्षमात्र में उक्त विशेषता को तथा सभावन्यप्रकारक घटाभावविषयकप्रत्यक्ष में घटादिज्ञान को कारण मानने से उपर्युक्त दोषों में कोह भी दोष न होगा। क्योंकि ''इस्याकारकमयक्ष अमावश्यमकारक घटाभावादिविषयक धोने मै घटादिज्ञान की अपेक्षा भव करेगा और य पूर्व में घटादिज्ञान रहेगा तो अभाव विशेषणतया घटादि का भाग अवश्य होगा । 'अभाव प्रतियोगी घटा' इसकी भी अनुगपति नहीं होगी, क्योंकि पक्ष अमावस्यप्रकारक घटाभावविषयक होने से घटतामरूप कारण से सम्पन्न हो जायगा पटवल में पठान घटानाव के प्रत्यक्ष में
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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