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१० क० टीका व हि० वि०
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पच भावलौकिकप्रत्यक्षस्य घटत्वाद्यन्यतमविशिष्ट विषयकत्वनियमाद् विशेसामग्री बिना सामान्यसामग्रीमाचात्कामत्पचेन भावनिर्विकल्पकं, 'न' इत्याकारकप्रत्यक्ष वा विशेषणादिज्ञानरूपविशेषसामग्रधभायात् । न च अभावलौकिकप्रत्यक्षत्यपटस्वा दिविशिष्टविषयकप्रत्यक्षत्वयोर्व्याप्यव्यापकभावाऽभावात् कथं विशेषसामग्रीत्वमिति वाप म कार्यतावच्छेदकीभूतत सर्माश्रययत्किश्चिव्यक्तिनिष्टकार्यतानिरूपित कारणतावच्छे
काल में
भिवार भी नहीं होगा क्योंकि एक भूतल में पदाभावेन घटाभाव का प्रत्यक्ष न मान कर पदाभाव का दो आरोप मानने से 'भूतसं घटाभाववत्' इस प्रतीति का निर्वाह हो आया। इस कार्यकारणभाव को मानने पर तेज के बाधिक से उसके प्रत्यक्ष की अनुपपत्ति भी नहीं होगी, क्योंकि वह अभावस्य कारक न होने से उसमें तेजरूप प्रतियोगी के ज्ञान की अपेक्षा ही न होगी। गतः अभावमस्थ में उरूप से सन्निकर्ष और प्रतियोगिज्ञान को कारण मानने में कोई क्षति नहीं है" - हो यह ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसा कार्यकारणभाव मानने पर 'चटष भूतलम्' इस ज्ञान के are 'भूख' म अभाववत्' इत्याकारक असंसर्गग्रह के अभावरूप आपादक से । 'अभाषवद् भूतलम्' इस प्रकार के प्रत्यक्ष की आपत्ति होगी ।
मात्य और प्रतियोगियान में उक्त प्रकार के कार्यकारणभाव को स्वीकार करने में सपने पड़ा क्षेत्र यह है कि उक्त कार्यकारणभाव को स्वीकृत कर लेने पर तम की अभावरूपता सिद्ध न हो सकेगी; क्योंकि उक्त रीति से अभावप्रत्यक्ष में प्रतियोगि शाम अपेक्षणीय होने पर भी तमस्वरूप से तम का प्रत्यक्ष तेजरूर प्रतियोगी के बा विना ही सम्पन्न होता है, जिससे राम की भावरूपता ही सिद्ध होती है, मतः उक के प्रतिकूल होने से उसकी 'देवानांप्रियता' अता का ही सबक है ।
| सामान्यकार्य की स्वामग्री से विशेषकार्य की अनुपपत्ति,
दादी की ओर से यह भी कहा जा सकता है कि "अभावप्रत्यक्ष में प्रतियोगिवान की कारण न मानने पर भी 'अभाव:' इत्याकारक प्रभाव के निर्विकल्प कमत्यक्ष तथा 'न' हत्याकारकप्रश्पक्ष का धारण किया जा सकता है, जैसे 'घटो नास्ति पठो मास्वि' इम्यादि रूप में मभाषविक जिनमे लौकिकप्रत्यक्ष प्रसिद्ध हैं वे सभी स्वादि अन्यतम धर्मो से विशिष्ट घटादि को अभाष के विशेषणरूप में अवश्य विषय करते हैं। यतः अभावविषयकप्रत्यक्षस्व सामान्यधर्म है और घटत्यायन्यतमं विशिष्टविशेषित भभावकिलोकिकवत्यक्षत्वविशेष धर्म है । सामान्यधन का कारण है ि यसस्यविशेषणता और विशेषधर्मावळिस्म का कारण है घटादिमन्यतमधर्ममकारक ज्ञान । 'विशेषधर्मावच्छिन्न की उत्पादक सामग्री के विना केवल सामान्यधर्माव नको सामग्री से कार्य की उत्पत्ति नहीं होती है' यह नियम है। इसलिये पटादि की भहानशा में केवल इन्द्रियसम्बधिशेषणता से 'मभावः प्रत्याकारक भच्या 'म' हत्याकारक प्रत्यक्ष की भाति नहीं हो सकती ।
झा.पा. १९
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