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स्पा० क टीका पं०
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प्रकारया से निपित
होने से
व्यभिवार होगा"
तो यह टैंक नहीं है, क्योंकि विशेषणभाग में अभाव में प्रतियोगितासम्बन्ध से का प्रकार विधया भान होने से प्रत्यक्ष में भी प्रतियोगित्वसम्बन्धानिएकारतानिरूपित भावनिष्ठता है। गमः उक्त प्रत्यनस्थल में भी इन्द्रियसम्बज विशेषणशासक कर अभ्यभिचार नहीं है.
यदि यह शंका करें कि "इब्रिय सम्बद्ध विशेषणता के कार्याले में विशेषरूप से प्रतियोगी का निवेश न करने पर तथा किकबाल को माद्य से विशेषित अभावविषयकप्रत्यक्ष ही के पति कारण मानने पर उस विशेषतासि कर्म से कान न रहने पर भी वयं नास्ति मेयो नास्ति इस रूप में घटाभाव के प्रत्यक्ष की आपति होगी क्योंकि इस प्रत्यक्ष में प्रतियोगित्यसम्बन्धाद्रिध्य-मेषभिष्ठप्रकारात या पिता के होने से यह प्रत्यक्ष भोस विशेषण के उफ कार्यवाहक से माफ़ान्त है। तथा भभाष में प्रत्याि विशेषण न होने से उसकी उत्पत्ति में घटत्वादिकारकशान की कोई अपेक्षा नहीं है'सा उत्तरे कि विशेषणमा प्रकारीभूममितियोगित्व कारसा निरूपित अभाव निष्ठविषयाशी प्रत्यक्ष का कारण है, न कि केवल प्रतियोगित्वसम्बन्धा चिनप्रकार हामिरूपित प्रभावनिष्ठचिपताकी प्रत्यक्ष का देवास्ति मेयो नास्ति इस प्रत्यक्ष में घटाभाव में मध्य-पेय का भान केवल प्रतियोगितासम्बन्ध से ना हे प्रकारीभूताद्यश्षा अनि प्रतियोगिता सम्बन्ध से नहीं होता, क्योंकि यदस्यायनमतियोगिताकघटाभाव में इव्यस्थ व निमतियागिता सम्बन्ध नहीं रहता |
| अभावत्वनिर्विक्रय की आपत्ति का अङ्गीकार
यदि यह शंका करें कि “घटाभाव के साथ रष्ट्रिय का सम्बद्धविशेषता सम्मि कर्ष होने पर जैसे घटा रहने पर अभाव में प्रतियोगिता से घर प्रकारक और अभाषम्य में भिविशेषणक 'घटो नास्ति इत्याकारकपत्यक्ष होना है, उसी प्रकार घट शान न रहने पर उस मनिक से केवल अभाषत्व का निर्विक्रयक्ष डोना चाहिये तो यह का ठीक नहीं है क्योंकि अभters का मिधिकसपक प्रत्यक्ष इ है । अन्यथा यति क्षमावत्य का निर्विकल्प माना या मोटो नाति' इस वश में भी भाव का रूपमः भान न हो सकेगा, क्योंकि निरवतिद्धि में विनाकमान कारण होता है। अतः यदि अभावत्य का निर्थिक
न
होगा तो अमायांश में स्वरूपतः अभाग्यमकारक प्रत्यक्ष न हो सकेगा। उपर्युक्त विचार से मिचकर्ष निकलता है कि सम्बद्धविशेषणता प्रतियोषिविदोषिन अभावविषयक प्रत्यक्ष का कारण हि गतः गायक का अभाव होने के कारण अभाव में प्रतियोगिता सम्बन्ध से प्रतियंांगी का अवगादन न करने वाले 'ल' प्रत्याकारक अथवा 'अभावः त्याकारक प्रत्यक्ष को आपत्ति नहीं हो सकती ।
[विस्तृत पूर्वपक्ष समात]