________________
शस्त्रषार्तासमुच्चष-स्तबक ! लो.. अथ वदभावलौकिफप्रत्यक्षे तदभावयत्किश्चित्प्रतियोगिहानत्वेन हेतुत्वाद् न ग्यभिचार-दति चेत्! न, तया हेतुत्वे मानाभावान् वाधारिशानशून्यस्यापि सन्निकृष्टे इदावाबन्तन इदन्स्वादिनापि यायाधिशेपिततदभावलौफिकप्रत्यक्षस्येष्टत्वात् । पाचादिविशेषिततत्प्रत्यक्षं तु विशेषणतावच्छेदकवाहित्यादिप्रकारकशानसाध्यम्, इति तेजोमानं विनाऽपि तम प्रत्यक्षे न दोषः" इति चेत् ! धानमात्र में था मभाषपत्यक्षमात्र में प्रतियोगिताम को कारण नहीं माना जा सकता, क्योंकि प्रमेपत्य माधि का से अभाव का जो 'प्रमेय पेसा शाम होता है, पय भावत्व रूप से किसी पर प्रभाव का लौकिकास्यक्ष होने के बाद अमावत्यरूप सामाग्यलक्षण प्ररथाससि से समस्त भभायों का जो माया' मा प्रत्यक्ष होता है, यह प्रतियोगिपान के बिना ही छोता है, अत। प्रभावहान एवं अभाव प्रत्यक्ष के प्रति प्रतियोगिहान का मिवार हो जाता है । 'तस्पनियोगिक अध्यष के लौकिक प्रत्यक्षा में तत्पतियोगी का कान कारण है-यह भी कपमा नहीं की जा सकती, क्योंकि इसमें भी यभिचार है, जैसे प्राचीन नैयायिकों के मत में घटाचभाष के तीन प्रतियोगी होते हैं (२) घदावि (२) घटादि का प्रापभाय और (३) घटादि का स, क्योंकि उनके मन में घटादि के समाप घटादि का भागमाय और घटादि का यंस भी घटाचभाष का विरोधी होता है, मौर पर नियम हैक 'जो मिस अभाव का विरोधी होता है, यह उस वाभास प्रातियोगी होता है। इस प्रकार घटादि का अमात्र अंसे घातिप्रतियागिक घटादि प्रागभाषप्रतियोगिक पर्व घडाविसनियोगिक भी है, किन्तु उसका लौकिकप्रत्यक्ष घटादि माणभाव पवं घटारियल का ज्ञान न रहने पर भी घटादि के माममात्र से 'भत्र घटा विनास्ति-यह पानि का मभाव है स कप में होता है.1 मनः घटादिपागभाष, भाष घनाविश्वसम्पमतियोगी के शानाभाचशा में भी घटादिमागमायमनियोगिक पर्व घठाविषयसप्रतियोगिक घटागभाव का लौकिकपत्यश्न नि से सम्प्रतियोगिकमभाष के सौकिकमत्यक्ष होने से तत्पतियोगिकमभाव के लौकिकप्रत्यक्ष में तमतियोगिहान का म्यमिवार पर है।
तस्पतियोगिक प्रभाष के किकपत्यक्ष में तम्प्रतियोगीमान को कारण मानने में समीनमैयापिकों के मत में भी व्यभिचार है-जैसे मधीनमत में सभी समनियतभाषों में लाघव ले अमेव माना जाता है, नदनुसार एकत्याभाष, परिमाणाभाव माहि सभी समनियत अमाप परस्परपतियोगीमसियोगिक होते हैं, अर्थात् पकवाशाय एकत्यति योगिक होने के साथ परिमाणमौतयोगिक भी होता है, पवं परिमाणाभाय परिमाणमति योगिक होने के साथ परस्पतियोगिक भी होता है, किन्तु पत्याभाय लौकिक प्रत्यक्ष परिमाण के रहने पर भी पकत्वमा शान से पष' परिमाणाभाव का मौकिकास्यक्ष भरवशाम रहने पर भी परिमाणमात्र के ज्ञान से सम्पन्न हो जाता है मत परिमाण
पप्रतियोगितान न रहने पर भी परिमाणप्रतियोगिक पकत्वामाव एवं एकस्वरूपतियोगिहान न रहने पर भी एकरवप्रतियोगिकपरिमाणामार का लौकिकप्रत्यक्ष होने से माम्य मत में भी तमतियोगिक ममाष के लौकिकन्यक्ष में तन्प्रतियोगिमान का व्यभिचार