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________________ स्था क० ठीका पति. वि.. २१३ फिटम, पर्व तमसोऽभावस्थे सेजोमाने रिना मान में स्यात्, अभाषनाने प्रतियोगिज्ञानस्यान्वयष्यतिरेकाभ्यां हेतुत्वावधारणात् । भभावेष्टापत्तिः, आलोकं जानतामेम तमःप्रत्यक्षस्वीकाराम् । तदाऽराचार्या -"गिरिदरी विवरवचिनो यदि योगिनो न ते तिमिरावलोकिना, तिमायलोकिनरेत वन स्टालो." रहित ! न, देनाऽप्रतिसन्धानेऽपि तमोज्नुमवस्य प्रत्यक्षसिद्धत्यान् । म ''अभावस्य ज्ञानमात्र प्रत्यक्षमात्रे वा न प्रतियोगिवानं हेतः, प्रमेयस्मादिनाऽभावग्रहे, अभावत्वसामान्यलक्षणाधीनतन्प्रत्यक्षे च ग्यभिबारात । नापि तरभाबलौकिकप्रत्यक्षे तज्ज्ञानं हेतु प्राचां घटात्पन्ताभावादेः घटादि सत्तागभार-तत्प्रध्वंसप्रतियोगित्वात्, तत्वयाग्रहेऽप्येकग्रहे प्रत्पक्षात्। नव्यमले समनिधन कत्वपरिमाणाचभावत्यैफमात्रग्रहे प्रत्यक्षाश्च ।। पाक्षष में आलोक की अपेक्षा होने से संयोगसम्बन्ध से मालोकतन्य गालोक का प्रत्यक्ष होने पर भी उक्तभिशाप के प्रति गालोक को कारणता में व्यभिचार, होगा। किन्तु इस प्रकार का कार्य कारणमाय मानने को अपेक्षा लामय से तमोभिगमअष्य के प्रत्यश्न में नम को मतियन्धक मानना को न्यायसंगत है । साथ ही यह भी विधारणीय है कि सुषर्णभिमतेजोभिन्नइचाक्षुष के प्रति आलोक को केपल आलोकसोन कारण मामले पर मालोकपरमाणु, चक्षु, उम, सुवर्णरूप मालोक के भन्धकार में भी सुलम होने से मन्धकार में भी सुवर्ण पर्व शटार के साक्षुष को मापत्ति होगी । अतः मालोक को महाभूतानभिभूतरूपयज्ञालोकारवनय कारण मानना होगा, तो उसकी मपेमा तमोभिन्नद्रव्य के चाक्षुष में तम को प्रतिवन्धक मान कर तमोऽभाषत्वेन तमोऽभाष को कारण मानने में स्पर लायब है। प्रकाश के ज्ञान बिना अधिकार का ज्ञान न होने को भापति] अन्धकार को अभाव रूप मानने में पक और योष है, यह यह कि शम्धकार यदि तेजोऽभाधरूप होगा तो तेज का मान हुये बिना उसका हान हो सकेगा, क्योंकि मम्बय-व्यतिरेक से प्रामावमान के प्रति प्रतियोगितान की कारणता सिद्ध है। यदि यह कहे कि-"या आपत्ति प्रष्ट है. क्योंकि जिन्हें रोज का शान रहता है. उन्हें ही अन्धकार के प्रत्यक्ष का होना मान्य है जैसा कि प्राचार्य ने कहा है कि 'योगी जब एस की मधेरी गुफा में रहते हैं तब उन्हें भधकार का प्रत्यक्ष नहीं होता; मौर यदि होता है तो अवश्य ही उसके पूर्व उन्हें तेज का स्मरण हो आता है." ना यह ठीक नही है, कोंकि सेम काहान म रहने पर भी मम्धकार का अनुभव प्रत्यक्षसिद्ध है, जो व्यक्ति तेज को नहीं जानता, यह भी अन्धकार का अनुभव करता है, और उसे अपने उम्स मनुभव का 'तमः पश्यामि=अन्धकार वेन साइ' इस रूप में संवन भी होता है। 'भभाषज्ञान में प्रतियोगज्ञानकापणता पर विचार-पूर्वपत] अभावमाम के प्रति मतियोगिझान को कारणता भी विवेचनीय है, जैसे, भाव
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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