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शास्त्रात समुच्चय-०७७
किं च एवं चशोदकत्वेनाहेतुत्वापतिः । अपि च चक्षुः संयोगावयोगम्बन्धेनैव लोकत्वेन हेतुता वाच्या, लाघवात् । न च तेन सम्बन्धेन tयालोक चियम्, इत्यालोक एव व्यभिचार:, इति भिन्न यः aapoverक्षुषे तथा हेतुता याच्या, तथा च लाघवात् वमोऽन्यद्रव्यनाक्षुषं पति तमसः प्रतिबन्धकत्वमेव न्याय्यम्, महदुभूतानभिभूतरूपषदालोकल्यापेक्षया तमोऽभावरवेन हेतुत्वे छावाच ।
[क्षयोपशमरूपा चाक्षुपयोग्यता द्रव्यवाक्षुप के प्रति कारण ]
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माशय यह है कि जैन मत में चानुषाविज्ञान मात्मा का सह गुण है। उस पर मारक कर्मों के भाषण रहने से शाम प्रगट नहीं होता है, भाचरण कर्मों का क्षयोपचम होने से बाम अगर है के भारत में दी में म और भूतरूप रहता है, मैन सियाग्यानुसार वे उन तथ्यों के श्रानुपप्रत्यक्ष की सा अमीरूप है। इस सामग्री के होते हुये भी द्रव्य का चावयत्यक्ष इसलिये मगद नहीं होता कि वह यचाप के विरोधी भावरणीयकर्म से भवन रहता है। अब का आलोकसंयोग भाषि से चाक्षुभायरणोयकर्म का अभिष होता है, तब द्रव्य में योग्यतासंपन्न होने से हो दृश्य का आप प्रादुभूत होता है। पावरणीय कर्म के भय को धात्रों में झपोपशम कहा जाता है। दष्या के उत्पादन में यह क्षयोपशम सुखपरूप से सापेक्ष होने से यमतत्राक्षुषयोरधना को भी श्रोम से पचहत किया जाता है। यह श्रयोपशम आलोकसंयोग आदि परस्पर निरपेक्ष कारणों से सम्पादित होने से विभिन्न प्रकार का होता है। उन सभी प्रकार के क्षयोपशम का मध्यचक्षुषकर्मक्षयोपशमत्म अनुगम कर क्षयोपशम में ही इव्यत्रक्षुषसामान्य के प्रति अनुगत रूप से कारणता मानी जाती है। व्यापयाकार ने द्रव्यगत योग्यता को भलीक्षयोपशमरूप कह कर इन वालों का संकेत किया है ।
[आलोकसंयोग को कारण मानने में चक्षुकारणतान्न की आपत्ति |
भाक संयोग को ः संयोगा छेदका चिन मालोक संयोगस्वरूप से कारण मानने पर बक्षु की आवकारणता का भङ्ग भी हो जायगा क्योंकि आलोक संयोग कारणता के मछेक कोटि में यक्षु का प्रवेश हो आने से घट के प्रति के समान चाक्षुष के प्रति नटु अन्यचासिज हो जायगा ।
[भालोकसंयोग की कारणता मानने में गौरव |
दूसरी बात यह है कि आलोकसंयोग को भूः संयोगावच्छेदकावच्छिन्न स संयोगावच्छिन्न आलोकसंयोगश्वेन कारण मामने पर सौरय होगा, मला लाघव से योगायोगसंबन्ध से आलोक की की कारण माना जायगा, फलतः आलोक में ही संयोग से आलोक का अभाव होने पर भी बालोक का होने से आलोक में ही हम्याक्षुर आलोक का व्यभिचारी हो जायगा । अतः प्रत्यभामाच के प्रति मालोक का कारण मान कर मुवर्णभिन्नभिन्नद्रव्यवाक्षुष के ही प्रति उसे कारण मानमा उबित होगा; क्योंकि ऐसा मानने पर सुवर्ण एवं तेजोभिस्य केही