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स्पा • टीका व वि० दिय
आकोकं विनाऽपि चूकादीनां द्रव्यचाचपोदयाद् व्यभिचारात् । न च चैत्रादिचाक्षुप पर तब्रतुवा' न व्यभिचार इति-वाश्यम्। तयाप्यम्ननादिसंस्कवचक्षुषां तस्करादीनां साक्षषे व्यभिचारात । न च अमनाघसंस्कृतचराविचक्षुर्जन्यचाक्षुषे तदेतत्वम, अठमनादीनामपि च स्वातम्येण पाचपहेतुत्वमिति वाच्यम् । अननुगमात् , आलोकापदपोध्यक्षयोपशमरूपयोग्यताया एवानुगतलन हेतुल्यौचित्यान् । है अतः अन्धकार को प्रध मामने पर मालोकनिरपेक्ष बक्षु से उस के प्रत्यक्ष की मनुपपत्ति दुर"
[उत्सरपक्ष:-अन्धकार के चाक्षुषप्रत्यक्ष की उपसि] इस शङ्का छ उत्तर में यह कहा जा सकता कि उम्स्, बिली धादि अनेक मानवरों को माधकार में भी हृदय का चाक्षुषप्रत्यक्ष पाता है. अतः व्यभिचार होने के कारण व्यषिषयकवाष पत्यक्ष के प्रति भालेकसयाग की कारणता सिस्न होने से सम्धकार को प्रन्य रूप मामने पर भी आलोकनिरपेक्ष मनु से उसके प्रत्यक्ष की अनुपत्ति नहीं दो सकती।
[शालोकसंबोग के व्यभिचार का वारण करने का निष्फल प्रयास] पवि यह कहें कि-"चत्र मैत्र शानि जीवो को भन्धकार में प्रग्य का पानुष होने से उन्ही अले भीषों कही द्रव्यमानुष के प्रति भालोकसंयोग को कारण मानने पर व्यभिचार न छोगा''-४ा यह नहीं है, क्योंकि पक्षको विशेषकार के अम्जन मावि से संस्कार करने पर जोर मावि को अग्धकार में भी द्रव्य का साक्षष होने से भालोकसंयोग की साक्षुषकारणता में भिवार अनिवार्य है। यदि यह है कि-". बादि के असमादि-असंस्कृतयच से होने वाले इयवाक्षुष के प्रति मालोकसयोग को तथा सम्झनाविसंस्कृत मश्च से इनेि वाले इण्यवानुष के प्रति सम्मवादिसंस्कार को कारण मानने से व्यभिचार न होगा'-तो याठ ठीक नत्री है, कोकि पेक्षा मानो पर द्रव्यमानसामान्य के प्रति उन दोनों में कोई कारण न हो सकेगा, क्योंकि अम बोनी का कोई पेसा अनुगत धर्म सातों मिस धर्म के द्वारा दोनों का मनगम कर दोनों को प्रख्यचाक्षुषसामाग्यकारण माना जा सके और यदि मालोकर्सयोगस्य पर्व भजनसिंस्कारस्य रूप से दोनों को स्वताप से कारण माना जायगा तो अनादिसंस्कार के अभाव में मालोकसंयोग से और मालोकसयोग के मभाव में यम्सनाधिसंस्कार से प्रत्ययाल की उपसि होने से दम्यवानुष में दोनों का पतिऐकव्यभिचार को झायगा । यदि इस भय से दोनों को पूष्पाक्षुषसामाग्य का कारण म मान कर दन्यवाक्षपषिदोष का ही कारण माना जायगा, तो द्रव्यमाशुषसामान्य के पनि पक्ष संयोगमात्र ही कारण होगा, और उस पधा में मालोकसंयोग एवं अलमाविकार के नरहने पर भी मम्धकार में उपचापसामान्य के उत्पाद की मापति होगी। श्रतः इन सभी प्रपत्रों को छोड़ कर यह कतरना करना उचित लगता है कि मालोक आदि से उबोधित बापाचरणीय कर्म के अपोपशमरूपा चाक्षुषयोग्यता ही घण्यवानुष का कारण है।