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शास्त्रवान्तसमुच्चय—स्तक १०
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सम्बन्धेनालोकसंयोगस्य हेतुत्वमपि न निरवयम् सम्बन्धगौरवात् किशिदवयवा लोकसंयुकमेव चक्षुषाऽन्धकारवह्नित्तिसंयोगेऽन्धकारेऽपि वस्तुग्रहणप्रसङ्गा
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इति चेत न,
और मकारस्थ ग्रम्य का और वह अपयथ भालोक
यदि यह कदे कि लोकसंयोगावच्छेत्र कार्याच्छन्नः संयोग को आलोक संयोगान लेषकाननसंयोगत्वरूप से कारण मानने पर बालोकस्थपुरुष को मम्बकारस्थ इय * enger की मापचि नहीं होगी, क्योंकि संयोग अन्धकार के घी संयोग का अनक है। अतः उस वक्षुः संयोग आलोकसंयोगाच्छे काम महतो नहीं है, क्योंकि प्रक्षु संयोगावच्छेदका विद्यन्न मालोकयोग की अपेक्षा बालोकसंयोगामधच्छेदकानयनसंयोग गुरु है, अतः सावरूप निगमक से उक्त बालोकसंयोग की कारणता सिद्ध हो जायगी। उक्त चक्षुःसंयोग को कारण मानने में गौरव से अतिरिक्त भी एक दोष है यह यह कि अन्धकारस्थ पुरुष को प्रकाशस्थ द्रव्य का पापप्रत्यक्ष न हो सकेगा क्योंकि अन्धकारस्थ पुरुष के पक्ष में विद्यमान प्रकाशस्थद्रव्य का संयोग आलोकसंयोग के अनधच्छेदक मन्धकारथचक्षु साग मे अव होने के कारण आलोकसंयेोगानव को काम पनि महीं होता । [मनःप्रतियोगिऋविजातीयसंयोगसम्बन्ध से हेतुता में गौरव ]
भिन्न भिन्न भागों में य और मालोक से संयुक्त प्रय्य के चाक्षुषप्रत्यक्षापति का परिहार इस प्रकार के कार्यकारणभाव से भी हो सकता है कि समवायसम्बन्ध से भालोकामधान्य के लौकिक वाक्षुषप्रत्यक्ष के प्रति आलोकसंयोग स्वाधानियो
बधुः संयुक्तमन प्रतियोगिक विज्ञातीयसंयोगसम्बन्ध से कारण है, जब किसी द्वय में चक्षुका संयोग अन्य भाग में होगा और आलोकसंयोग भागान्तर में होगा तय मालोकसंयोग का जनसम्वन्ध नयन सके क्योंकि द्रव्य के भिन्न भिन्न भाग के संयोग और भलोकसंयोग का वच्छेदक होने से सम्बन्ध के शरीर में for '' से माटोक योग को लेने पर भू स्थायीका सिकेर मतः उक्त सम्बन्ध से आलोक संयोगरूप कारण का अभाव होने से उस स्थिति में द्रव्य के चाक्षुष प्रत्यक्ष की आपत्ति न हो सकेगी किन्तु फिर भी यह कार्यकारणभाव स्वीकार्य नहीं सकता पितासम्भव से द्रव्यत्राभूष के प्रति संयोगावच्छेदको संयोग को समवायसम्बन्ध से कारण मानने की अपेक्षा उक्त गुरुतर सम्बन्ध से आलोकसंयोग को कारण मानने में गौरव है। गौरव के अतिरिक्त दूसरा दोष यह है कि मालोकय पुरुष का जब कभी आपने जिस भाग से आलोकसंयुक्त हुआ है उस समय यदि वह उसी भाग से अन्धकारस्थ मिति मादि से भी संयुक्त हो तो उस समय स्वाय दकावनियेगवचक्षुः संयुक्तमनः प्रतियोगि कविजातीयसंये [गसम्वन्ध से आलोकसंयोग
कस्थ पुरुष में विद्यमान होने से मालोकस्य पुरुष को अन्धकारस्थ मिति मावि के क्षुषप्रत्यक्ष श्री आपत्ति होगी ।
उपर्युक सारे कथन का निष्कर्ष यह है कि मन्धकार में मध्य के समस्य की आपति के परिहारार्थ द्रव्यचाक्षुत्र के प्रति वाकयोग के कारण मानना अनिवार्य