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२०५ वाप्यषपवनीलादिनचाऽपपिनि नीलाधुपपतौ पृथिवीत्वेम तत्सममायिकारणता उभायान ! 'पप्पम पारमाणिमातालापीभूतनपत्ताभारादेव नीलादी नीलाधनुपपत्तिनिळतात् ।
मय नीलजनकविभातीयतेमासंयोगस्प जलादापि सम्भपात् तत्र नीलानुस्पतये नीलरवायचिम्म प्रति घृषिवीत्वेन हेतुस्त्र फरप्यम इति चेत् ! न, तथाप्युपस्थित विभातोयनोलवावच्छिन्नं प्रत्येय तहेतुयामित्यान्। व्यापकधर्मस्य पायधर्मेणान्यथासिद्ध। उसमें नीलरूप की पत्पत्ति हो सकती है। शेषिकगत में भी मोलरूप के प्रति पृथिवी को समधाधिकारण मामले की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि अवविगन नीलरूप के प्रति मषयराम नीलकाप को कारण मानने से ही बाल वेन भादि में नाररूप का पुत्पति का परिहार हो सकता है।
यदि यह शङ्का हो कि “भषयधिगमील में अययवगतनील मामानाधिकरण्य-सम्य* से कारण होता है तो अपयधमननील का सामानाधिकरण्य जैसे अग्यनिष्ठ अषयवी में है उसी प्रकार अपरागत नील आधि गुणों में भी है। फलतः अषयमस नील से मैले अषयषगत अवयषो में से अवयवगत नीलादि गुणों में भी-नोलरूप की उत्पत्ति का प्रसा होगा; अतः उसके निवारणार्थ नीलका के प्रति भिधी को समनायिकारण मानना भाषश्यया है". तो इसका उत्तर यह है कि व्यभिन्म में सम्यभाव की उमाति के परिहारार्य समषायसम्बन्ध से जायभाय के प्रति तावास्यसम्मम्ध मे ब्यको कारण माना जाता है। नीलमप भी अन्यभाव / भतः उसकी उत्पत्ति भी इम्य में ही हो सकती, गुणादि में न हो सातो | सलिये नीलका के प्रति पियो को मलग से समवाधिकारण मानने की कोई आवश्यकता नहीं है। अतः वैशेषिकमत में भी प्रसवकार की नीलसरयान् मानने पर उसमें पुधियीत्य की भापति नो सकती।
मालरूप की उपसि दो प्रकार से होती है. भवषयी में प्रययवमत मीलका से तथा परमाणयों में विजातीय सेनासंयोगरूप से, प्रिटोपली होती.लि. का रूप पहले से नीद नही होता, उस मिट्टी से बने यतन जग भाग में पकाये जाते है तो गोल वर्ण हो जाते हैं, इस से यिक्ति होता है कि उन बननों का माग के तीन तार से परमाणु पर्यन्त नाश हो जाता है भोर उभरे, परणावों में पाक से भील रूप की उत्पत्ति धोकर कारणगुण से कार्यगुण को उतासि को प्रक्रिया के अनुसार मील परमाणुषों से तयणक ग्यणुक आदि कम से नोल वर्ण के बर्तनों की उपत्ति होती है। पही पीच परमाणुपाकवानी पैशेषिकों का मत | अथया पिठरवययकी में भी एक मानने वाले मैपापिकों के मतानुसार वर्षों में बी पाक से मील का को उत्पत्ति होती है। इस स्थिति में यह शक हो सकती है कि जैसे विजातीयतेजः'संयोग से पृथिवी के परमाययों या स्थूलपदायों में भील कर की उत्पत्ति होता है, वैसे हीरक संयोग का जल भारि में भी सम्भव होने से जल आदि में भी नीलकर की उत्पत्ति की भापति होगी । अतः इस भापति के परिवारार्थ नीलरूप के प्रति प्रधिको