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________________ सा स्था का टीका बी. वि. मुखम् नासतो वियते भावो नाऽभावो वियते सतः । उभ्यो।षि इटोडन्तस्त्वनयोस्तवदर्शिमिः" ||७६॥ मासतावरविक्षाणा, विद्यते भाव! वल्पावर, असावग्याघातप्रसवात् । सवय पृषिम्पादेः, अभावोऽपि नास्ति, अवशायदसत्यप्रसङ्गात् । उभयोस्पनयोरथयो, तस्वदसिमिः परमार्थयाहिमिः, अन्तो नियमः, दृष्टः प्रमिता,-'यद् यत्रोत्पद्यते-सत्र वन सद, यस यत्र सत्-तत् तमिष्ठामावाऽप्रतियोगीति ||६|| इदमेबापरेऽपि पदन्तिमुझम- नाभायो भावमाप्नोति, शशी तथागतेः । भवो नाभाताई, बीपश्चम सया || न हो अर्थात् अस्मारक अययों के विभाग से जिसका नाश हो षही व्यावहारिक नित्य होता है। परमाणु की खत्पत्ति भावों के संयोग से नहीं किन्तु वधाक के अायों के विभाग से होती है माता उसका समुदायषिमागरूप नाश सम्मषित ही नहीं है। इस लिये परमात्धरूप से समुदाय विभागरूप नाश न होने से 'परमाणु नित्या' रस व्यवहार की प्रामाणिकता की क्षति नही हो सकती, और पा रियम भी अक्षुण्ण बना रखता है। इस विषय में अधिक अिशासुमो के लिये उपाध्यायजो स्वरचित विध्यालोक नामक प्राध्यापकोकार की ओर संक्षेन करते है। "किसी पस्तु की न तो ऐकान्सिक उत्पत्ति होती है और न किसो वस्तु का पेकान्निर माश होता है'स विषय में महर्षि व्यास की भी सम्मति। प्रो अप्रिम कारिका में उन्ही के शब्दों में उचत करेंगे। या प्रस्तुन कारिका में 'यथा मासमाधिः' इस श में अनुष्टुप् उना रिन है, पर यह दोष नहीं है, क्योंकि कारिकाकार पक ऋषि है, उनका पचम भाप है, मौर रवि को लौकिक नियमों का बन्धम होता नहीं है ॥७॥ कारिका ७६ का भये इस प्रकार है [उत्पत्ति मौर नाश के विषय में व्यास की सम्मति खरविषाण भादि असतू पदार्थी की उत्पसि नहीं होती, क्योंकि उत्पत्ति होने पर उसके असरम का व्यापात हो जायगा । पृषिधी भावि सत् पदार्थों का शमाय नहीं होना, क्योंकि उनका अभाव होने पर शशशूम के समान उनका भी बलस्प हो पायगर । परमादी विद्यामों में शासन और सत् के विषय में पर नियम निधारित शिम कि 'जो पस्तु मह उत्पन्न होती है वहां बन पहले भी किसी न किसी बप में सा होती है, और जो पर जहां सत् होती है वह किसी मप में सदैव सा की सती है, पहा पकारततः उसका नाश यामी ममाव नहीं होता ॥३॥ उपन्ति और नाश के विषय में दूसरे लोगो भी सम्मति] ७ कारिका में उस विषय में अन्य लोगों की भी सम्मति प्रशित की गंदी है। कारिका का अर्थ इस प्रकार है
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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