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शास्त्रवासिमुच्चय-सापक लो र हसरसोगादि के दवियस्य पेरित बप्पार्य । अपामस्थाऽकुलका विभागमायण छति ।। भा-दुणुपाहि पे मारले तिषणुम ति बपएसो। ततो म पुण बिमसो मात्ति जामो अशू होई || इति (सम्मतिगाथा १३५-१३६) मुम चैनल प्राक परमालासरचे स्थमाका भाषनसमात् इति चेत् ! न, व्यावहारिफनित्यबयाणे समाविमागरूपस्यैव व्यवस्थ प्रवेश्यत्वादिति । अधिकं निम् बालोके । उतायें ग्यासमतिमा 'एगाऽऽह व्यास महर्षिः।' छन्दाप्रतिलोमताप्रार्षत्वान्न दोषाय ।।७।।
[परमाणुनिस्पताब्यबहारभ्रान्तता की भापति और परिहार "जिस कपको उत्पम्म या गण्ड होता है, उस कप से यह लिस्य नहीं होता".. इस नियम को तोड़ने के लिये कोई संशय करते हैं कि-"ता तो 'परमाणुः निस्पः' इस प्रकार परमाणुस्वरूप से परमाणु हो मित्यता का ग्ययार होता है, वह शमगागिक हो जायगा, क्योंकि परमाणुओं से स्थूल दव्य की उत्पत्ति के समय परमाणुस्वरूप से परमाणु का नाश होता है और स्थूलदाय के भवनों का विभाग होकर स्थूल व्य कम होने के साथ परमाणुबह परमाणु की उत्पत्ति होती है, जैसे कि 'सम्मति' नामक कप में बहा गया है
ध्यान्सरसंयोगभ्या केचिद् द्रव्यस्थ बुधन्त्युत्पावम् । सत्पावार्थाशिला विभागजात नेति ॥ शणुम्यागुकै ब्ये भार घणकमितिष्यपदेशः।
सतन पुनर्षिभक्तोऽणुरिति जातोगुर्भपति || (संस्कृतकपातर) -'हम लोग एकस्यध्यातरफयोगसेनयेष्य की कमाने है, लोग जस्त के अर्थ को पूर्ण रूप में समाने में सकुशल होने के कारण विभाग
उत्पन्न होने वाले प्रष्य को नही स्वीकार करते। किन्तु वस्तुस्थिति यह है कि से मन मोर चागुकों के संयोग से पक स्यूलद्रव्य को बम होती है और उस परपम्नवब्य को डणुक कहा जाता है, उसी प्रकार भागु और बपको का विभाग होने पर भणु प्रष्य की भी उत्पत्ति होती है, और उस उत्पम प्रग्य को भणु परमाणु कहा गता है।'
स्पलाम की उत्पत्ति के ममय परमाणु के परमाणुभाष का नाश मानमा युक्ति कात भी है, अन्यथा विभिन्न परमाणुभों का संयोग होने पर भी परमाणुओं का परमायभाय यदि पहले ही असा बना रहेगा तो स्थूल मुश्य की उत्पत्ति हो न हो सकेगी।
कार अब परमारवकर से परमाणु का नाश भौर उत्पाय होता है, सब वह पर बाप रूप से नित्य नहीं हो सकता। अतः 'परमाणुमित्यः' इस व्यवहार की भारतबापता मनिवार्य है।"- इस संशय का उत्सर पार है कि व्यावहारिकनित्यता के लक्षण
सम्माधिमागरूपमा का प्रवेश, अतः परमाणु की व्यावहारिकनित्यता में कोई माया होने से उत्तयार में प्रमाणिकता की आपत्ति नहीं हो सकती । कहने का बायब पर किमाश को मप्रतियोगियो म्यापहारिकमिस्मरण का लमण है, इस सपा में प्रविष्ट नाश 'अमुवायषिमाग' सप है, अतर जिसका समुदापरिभागरूप वाक