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पाक टीका. वि.
मुहम्-न तथाभाविन हेतुमन्तरेणोपजायसे ।
शिम : या पार महर्षिः ॥७५|| तथाभाविन' =कार्यरूपतया भरनशील, हेतुं विना कमपि न जायते, तत्परिणामकृतल्यावस्थाविशेपलगत्वात् तत्परिणामोत्पादस्य । न चैकान्तान्'-द्रव्ययम्भावन किश्चिद् नश्यात, तत्परिणामोसरद्रव्याघस्थारूपत्वात् तद्विनाशस्य । न चैवं द्रव्यमेव स्यात् न सूत्पादविनाशी, कश्चिद भिन्नत्वम्यापीटल्यात् । दिवसुत पम्मतो
सिणि वि उप्पायाई अभिन्नकाला य भिन्नकाला य ।
अस्पतरं अणस्यतरं च दवियाहि णायचा || [५. १३२] आस्मारूप उपायान की कल्पना की क्या भाषषपकता ? इस प्रक्ष का उत्तर देने के लिये ही प्रस्तुत कारिकाका प्रणयन हुआ है। सुनिये :
किसी भी कार्य की पति अहेतुक होती नहीं हैं। तथाभावी हेतु के षिमा अर्थात् कार्य के रूप में परिणममशीस कारण के बिना किसी कार्य की उत्पत्ति नहीं होती. पोंकि कार्य की उत्पत्ति का अर्थ ही यह है कि कारण के परिणाम से द्रव्य की एक विशेष अवस्था सम्पन्न हो । उदाहरण के कप में घट की उत्पति को समझा जा सकता है, मृद् पक वष्य है पहले वह एक विण्ड की अवस्था में रहता है। बाव में कपाल की अवस्था में जाता है, और स्पवात वह घर की अवस्था में प्रवेश करता है. इस प्रकार कपालमप कारण के परिणमन से पिन की अवस्था से
भनषतमाम व ट्रष्यकी पंकजयी घटात्मक अवस्था समानहोसीफलना मृत दक्ष्य को घटाक अवस्था की प्राप्ति ही घट की उत्पत्ति है। यह अवस्था कपाल के परिणमन से होती है अतः कपाल घट का उत्पादान कारण है, क्योंकि जिस कारण * परिणमन से य का नया अवस्था प्राप्त होती है बही पस नषी भषस्थाकप कार्य का उपायान कारण कहा जाता है, सभी कार्यों की उत्पत्ति इसी प्रकार सम्पा होती है, अतः उपावासकारण के बिना किसी भी कार्य का मादुर्भाव असम्भव है।
पति और विनाश द्रव्य से सर्वथा पृथक नहीं है] जैसे द्रश्य से पृथक किसी कार्य की उत्पत्ति नहीं होती, उसी प्रकार ठप से सर्वथा किसी कार्य का सारा भी होता. क्योंकि कार्य का मायका भी यही पर्थ
कार्य के उपलसमान स्व बान सके स्थान में व्यको पकायी अवस्था मातहो। अता घटकार के बाथै मृदय को प्राप्त होने वाली घटाबस्थ
बस्था स्थान में सूर्णाति भवस्था हो घर का माश है। इस प्रकार नाशवशा में भी घट सवध्य से कोई पृषकही म होता है ऐसा नहीं है। घदमाश उपादानमृदय में ही होता। नाश के इस निर्वचन के अनुसार नामाका कार्य भी उगावामकरण के बिना नहीं होता।
त्पत्ति और दिमाश के उस मिर्धवन को सुन कर यह कर की जा सकती है कि-"धट की उत्पत्ति और बिनाया जाय मुद्रण्य की विशोष भयरूपाये सब तो घट की उत्पावक पर्व घट की विनाशकसामग्री से घटारमक पर्व चमक बध्य की निष्पाम होग, उपनि और विनाश की निम्पति म होगी, क्योकि इण्य से भिन्न उनका कोई