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________________ - * -*-* शास्त्रमा समुच्चप-स्तवक हो । अकप्रतियोगिनिरूपितस्पेन विशिष्टद्रव्यनिरूपितत्वेन योस्पादस्थितिषिगमाना मिन्नकालमा, यथा पटोत्पादसमये घटमिशिष्मदत्पादसमये या न तधिनाशः, अनुत्पतिप्रसक्तेः । नापि तद्विनाशसमये तदुत्पतिः, अविनाशप्रसक्तेः । न च तत्प्रादुर्भावसमय एव तस्थिति,नद्रूपणावस्थितम्यानयस्थाप्रसक्या प्रादुर्भावाऽयोगात् । अतो इत्यादयोन्तरभूतारते. अनेकरूपाणामेफद्रव्य रूपन्वायोगात् । भिन्नानियोगिनिरूपितत्वेन मिशिम्यनिरूपिनत्वेन पाऽभिन्नकालता, यथा कुशुलन विशिष्टमन्नास-पटतद्वितिष्टमृदुत्पादमृत्स्थितीनाम् । असारूप्येण पानीपतराना ३ प्रदाः । मस्तिस्य ही नहीं है, तो फिर 'घर उत्पयते, सपति ये व्यवहार कैसे हो सकेंगे Pसका उत्सर यह है कि उपर्युक्त निचा के अनुसार मचि मोर विनाश यद्यपि वष्य से आयाभूत-अभिम है, तथापि उक्त स्पषधार के भनुरोध से सम्झे प्राप से कश्चित् भिग्न भी माना जाता है। जैसा कि सम्मति प्रणव में कहा गया है कि "जयोऽप्युत्पावादयोऽभिन्नकालाय भिन्मकालाध ।। अस्तरमनान्तरं में प्रत्येभ्यो सासथ्याः ..."॥ [संस्कृतसपास्तर] अर्थ-उत्पत्ति विनाश और प्रोब्ध-सवातनप ये तीनों ही पकालिक भी है। भिन्नकोलिक भी है, द्रव्य से मिन्न भी हैं, अभिग्न भी है। [१-१२२] पनि-स्त्रिांत-नाश की समानाऽसमानकालोनतां उत्पत्ति, स्थिति मोर विनाश किसी पक प्रतियोगी से अपवा उससे विक्षिप्तव्य से निरूपिन होने पर भिम्कालिक रोते हैं। जैसे उत्पत्ति स्थिति और विनाश का पर प्रतियोगी है घटस घट से या घटशिष्टमध्य से जब वे घटोम्पत्ति या घावशिष्टमन् की उत्पत्ति, घट स्थिति या घटविशिष्ट मृत् की स्थिति, घरमाश या घटविशिष्ट भुद का नाश, इस रूप में निरूपित होंगे तो उनके काल भिम होंगे, सब का पाही काल होगा, क्योंकि घर की या घविशिष्ठमृद की उत्पत्ति के समय पठ या घरविशिष्टमन् का यति धिनाया माना जायगा । तो घर या घर बिशिष्ठसूत् की उत्पत्ति म हो सकेगी, क्योंकि बढ़ की उत्पत्ति मृद् की घटावस्थारूप और पद का धिनाच मृदू की भूषिस्था रूपी तो मृत् की ये दो विरोधी अयस्थायें पक साप कैसे हो सकती है। इसी प्रकार घड के या घर विशिष्ट मू के मास के समय घट की या पर विशिष्ट मृद की उत्पत्ति भी नही हो सकती क्योंकि उस किति में घट का विनाश हो सकेगा, घटावस्था को पान करता हुआ मृदय असी समय पूर्णावस्था का भी वान कैसे कर सकेगा ? इमो प्रकार घट की उत्पत्ति के अथवा घट के विनाश के समय पद की स्थिति भी भी हो सकती क्योंकि घररूप से प्रथमतः सिम की पटकप से यदि उत्पत्ति होगी तो घटीएस में भामरयकर अमवस्था की भापति होगी, क्योंकि मरमाश न होने तक बगवर घट की उत्पति होती रहेगी । घरमा के समय घर की स्थिति मानने पर घटनाश कभी सम्मान ही न हो सकेगा, इस लिये नीनों मनेकाप होने से पक न्याय नहीं हो सको, अतः ये वध्य से भिन्न होते है। यह तो उत्पत्ति मामि तीनो के पक प्रतियोगी से निरूपित होने पर की बात ।
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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