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रुप१० क० ठीका दि
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अत्राह - भस्य चैतन्य हेतु चैतन्यस्य माती=मातृशरीरेऽभ्युपगम्यमाने 'दोषो न' इति न. किन्तु दोष पत्र, मातृनिष्टस्य चैतन्यस्य तनम्यत्वे गर्भस्न मानुभूतस्मरणप्रसङ्गात् ।
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किं प, गोमयविक्रयो जात्यस्वानुभवसिद्धत्वेन सवच्मियोः गोमयश्चिकपोत्वेऽपि चैतन्ये विशेषाऽदर्शनात् तत्र चैतन्यमेव हेतुः न तु मातृशरीरादिकम् । प्रज्ञामेधादिविशेषेऽप्यन्तरङ्गतया समानजातीय पूर्वाभ्यासस्यैव हेतुत्वम्, अन्यथा समानेऽपि रसायनाद्युपयोगे यमजयोः कस्यचित् कचिदेव महामेधादिकमिति प्रतिनियमो न स्याव, रसायनाद्युपयोगस्य साधारणत्वात् इति न मावचैतन्यात् तचैतन्यम् । न वेन्द्रियसमिदमेव ज्ञानोत्पत्ती सामान्यतो ज्ञानं प्रति ज्ञानहेतुत्वे मानाभावः सौ कानानुत्पति निर्वाणायोपयोगस्य ज्ञानहेतुत्वाऽसिद्धेः इत्यन्यत्र विस्तरः ॥ ७२ ॥ मात्र के मान्य होने से विलक्षण मातृतश्य से विलक्षण पुत्रचेतन्य की उत्पत्ति मामी आ सकती है "—
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इसका उसर यह है कि मातृचैतन्य को पुत्रतस्य का कारण मानना उचित नहीं है क्योंकि पुत्रम्य के कारणभूत मातृवैतन्य को मातृ में मानने में दोष नहीं ऐसा नहीं है. किन्तु दोष है ही, जैसे मातृगत चैतन्य को यदि पुत्र के चैतन्य का कारण माना जायगा तो गर्भस्थ चालक को माता से अनुभूत विषय के स्मरण की भनि होगी। कहने का आशय यह है कि यदि माता के चैतन्य से बालक में चैतन्य का उदय होता है, यह बात सत्य हो तो क्या कारण से कि गर्भावस्था में ही चालक को माता के अनुभूत विषय का स्मरण न हो? क्योंकि उस समय भी माता का अनुभवात्मक चैतन्य संस्काररूप में पालक के लिये सुलभ है ही । यदि मन किया जाय कि 'गर्भस्थ बालक को माता के अनुभूत विषय का स्मरण नहीं होता. यह कैसे जान लिया' ? तो इसके उत्तर में यही कहा जा सकता है कि यतः मात को गर्भस्थ बालक की किसी ऐसी क्रिया का अनुभव नहीं होता जिससे बालक में उम्र समय आशङ्कित स्मरण की सूता मानी जा सके। मतः गर्भस्थ बालक को माता के अनुभूतविषय के स्मरण का भ दोनासु है ।
[] न होने से चैतन्य का कारण चैतन्य ही होगा ]
साथ ही यह बात ध्यान देने योग्य है कि गोमय से उत्पन्न कि ओर वृक्षक से उत्पन्न वृश्चिक में वैजात्य प्रत्यक्षसिद्ध है क्योंकि दोनों के रूप-रंग में न अन्तर होता है | अतः गोमयजन्यवृधिक से निवृचिक के प्रति पृधिक को, वर्ष वृश्चिकजन्यवृश्चिक से विजानीयवृश्चिक के प्रति गोमय को सो कारण माना जा सकता है परंतु वैराग्य के प्रति विलक्षण गायों को कारण नहीं माना जा सकता क्योंकि बेस में बजाय का होना प्रामाणिक नहीं है। अतः एकजातीयचैतन्य के प्रति ही बिक्षण पदार्थों को परस्परमिरपेक्षरूप कारण मानता होगा और ऐसा मानने में व्यति रेकव्यभिचार स्पष्ट है, क्योंकि ऐसे कारणों में एक का अभाव होने पर भी दूसरे से