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पापघातांसमुख्य-स्तषक १ लोक नन्धेवं प्राणम्य चैतन्योपादानत्यं मास्तु, निमित्ताने त्वविरुद्धमेव, सन्नाशादेव च चैतन्यनाशा, आत्माऽभ्युपगमेऽपि नित्यत्वेन तस्य नाशाऽयोगान् । न च समाहरीरे आरमसंयोगनाशास्चतन्याभावः, विभुधेन तसंयोगस्यापि सार्वत्रिकत्वात् । चैतन्योपादानं च प्रागुक्तरीत्या शरीरमेय इति मन्यनास्तिकस्य न दृपणं, इति चेत् ? न, प्राणनाशं बिना पि सुषुप्त्यावी ज्ञानादिनाशात् सन्नानस्य तमाशाऽहेतुत्वान् ।
एतेन 'विजातीयमनःसंयोगस्य नाशस्यैव स्वप्रतियोगिजन्यत्वसम्पन्न प्रतियोगितया ज्ञानादिनाशे हेतृत्वमस्तु' इत्यपास्तम् , सुपृप्तो पासप्रश्वामादिसन्तानानुरो. धेन विजातीयमनःसंयोगसवस्या यावश्यकत्वात् ।
[माण-निमित्तकारण, रोरोपादानकरण-नयनास्तिकर्वपक्ष] इस पर नध्यवास्तिकों का कहना यह है कि-"चेतन प्राण धर्म का अनुविधान माहीं करता, अतः प्राग कोबैतन्य का उपनानकार न मामा नाय, पर उसे तन्य का निमिसकारण मानने में, नया उन अभाप से चैतन्य को अनुपात मानने में कोई घिरोध नहीं है, अन्यथा पनि उसे चतन्य का निमित्तकारण भी न माना:
ना जायगा तो कारणाभाष ही कार्यानुरपास का प्रयोजक होता है, अतः प्राणाभाव के चैतन्यानुत्प
नुत्पादका प्रयोजक न हो सकने से धैतन्योत्पत्ति का कभी षिराम होन होगा, क्योंकि उसके सपाजानकारण मामा के निस्य होने से तम्योम्पनिको सतन सम्भावना बनी रहेगी।
यदि यह को किससवारीरावदेन बान की उत्पति में सत्तरशरीर के साथ भास्मा का योग निमिसकारण है, अतः इस निमितकारण के मभाव से बैतम्य की अनुत्पसि मामी आ सकती है, तो यह डीक नहीं है क्योकि आन्मा के ल्याएक होने से उसका संयोग सभी मूर्स न्यों में तब तक रहता है जब तक ये भूलेंद्रष्य विधमान राते हैं। अतः मृतदेश में भी मामा का संयोग बने रहने के कारण शरीरात्मसंयोग के के समान से बैतम्य की अनुत्पत्ति मानमा उचित मही हो सकता । इस लिये विवश होकर या मानना आपश्यक है कि पूर्वतिरीनि से शरीर की शम्य का उपाहान और प्राण असका मिमित कारण है। मृतदेह में प्राणका निमित्तकारण का अभाव होने से चैतन्य की मनुस्मप्ति रहता है । इस प्रकार नयनास्तिकों के मत में दोष नहीं है।"
किन्तु घियार करने से नयनास्तिक का उपर्युक कथन मसंगत प्रतीत होता है, क्योकि सुषुप्ति के समय प्राण का समाव होने पर भी चतन्य की भनुत्पत्ति हसी अतः प्राणाभाव को बेतण्यानुरूपति का प्रयोग नहीं माना जा सकता |
विजातीयमनःसंयोगागाव चतन्याभाव प्रयोजक नहा है। 'प्रतियोगितासम्बन्ध से पानानि की अनुत्पत्ति के प्रति विजातीयमनासयोग का प्रभाष स्वनियोगिम्यत्वसम्बन्ध से प्रयोजक है', -पेला प्रयोग्य-प्रयोगकभाष भान कर शान के कारण विजानीयमनः संयोग में अभाव को भी बैतन्य की अनुत्पति का मपोजकानही माना जा सकता, क्योंकि, श्वास प्रश्वास के प्रवाद की मषिकिमानता की उपपत्ति के लिये सुषुप्ति के समय भी विजातीयमनासयोग का चना भावश्यक होता