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________________ स्था का टीका हि. मिक मूलम्--तेन तदभावमाविस्वं न भूयो नलिकादिना । सम्पादि सेऽ यतात्सः मोऽस्य एवेति चेन्न सत् ।।६९।। पर आह--तेन साम्प्रदादिना र को भी अवगन्यतिरेको, तात्विक वत्प्रतियोगित्य, 'तत्र मानम्' इति शपः । हेतुत्वेन क्लृप्तस्य तस्यैव कार्याभाषप्रयोनकाभावप्रतियोगित्वकल्पनौचित्पादिति भावः । अत्रोसाम्-'' अन्धयष्यतिरेकप्रतियोगिरवमेव प्राणादेसिमित्यर्थः । कुनः ? इत्याइन्भूयो मरणोनरं, नलिकादिना, भाविशवाद पस्त्यादिः , सम्पादितेऽपि -अन्तःसंचारिनेऽपि धायौं' इति शेषः । अतशिसवेः चैतन्यान्नुपरन्धययभिचारादिति भावः । पर आर-'+' नलिकादिना सम्पा. दितो वायु, अन्य पवन प्राणः, इति न व्यभिचारः। उत्तरवाधाइ-इति वेद ! न सत्-यदुक्रमेतत् ॥६॥ मृतदेह में किसके भाव से वन्य का अभाव होता है. यह प्राण मावि नहीं, किन्तु श्रापमा -समें क्या पमाण के? स प्रश्न का प्रतिमानी रूप में यह उत्तर है कि 'मुसवेश में मिलके अभाष से चेताय का अभाव होता है, वह भास्मा नहीं किन्तु माण मावि है, इसमें श्या प्रमाण । कहने का आशय यह है कि मो प्रश्न दोनों पक्षों में समामरूप से ऊठ सकता है उसे किसी पक पक्ष की ओर से नुमरे पक्ष के विरोध में ऊठाना गनुचिन है यदि यह कहे कि मृतोह में चैनण्य का अभाव तम्य के किसी कारण के अभाव के बिना नहों उपपन्न हो सकता. अतः स अन्यथानुपाति से हो या बात सिद्ध होगी कि 'प्रामावि तम्य का कारण हैं, मृमदेव में उसका अभाव कोने से पैतम्य का प्रभाव होता है तो इसका मी ग्रह नियन्दी उन्ना है कि आग्मा पैतन्य का कारण है, मृतदेह में उसका अभाव होने से अनन्य का अभाव होता है इस बार मागने में क्या प्रमाण करने का आशय यह है कि सन्यथानुगपति दोनों पक्षों के लिये समान है। अतः 'सन में चैतन्याभाव प्राणाभाष के कारण है केवल इसी पक्ष के समर्थन में उसका यिनियोग नहीं किया जा सकता ॥६॥ नलका वायुसंचार से प्राण में चैतन्यान्वयम्यतिरेकामाव की सिदि यदि यत्र को कि-"प्राणावि के रहने पर बैतन्य की उत्पत्ति होती है और प्राणावि के न रहने पर चेतन्य की उत्पत्ति नहीं होती. स प्रकार प्राणावि के साथ मतभ्य का मन्वयव्यतिरेक है। अतः माणादि मैं बैरभ्य के अवयव्यतिरेक के व्यापक अम्पपश्यतिरेक की को प्रतियोगिता, घही चैतम्य के प्रति प्राणावि के कारण होने में प्रमाण है। और जय प्राणावि चैतन्य का कारण है तो कारणाभाव के ही कार्याभाष का प्रयोजक होने से इसी को बैतन्याभाष के भयोजक अभाघ का मतियोगी मानना अर्थात् मागापभाषीले मृतदेह में सन्यको अनुत्पति मानना अम्रित है, अतःस के प्रतिवादी रूप में मात्मा के अभाव से मृतदेह में चैतन्य की अनुत्पति का प्रतिपादन ठीक नही है"--तो यह कहना ठीक नहीं है, क्योकि मृतदेह में नली, मसती मानि से वायु का
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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