SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७८ - -- ...शास्त्रमा समुनष:स्तबक र लो. १८ हेतुफत्वमत्र वत्सामग्रीसमनियतसामग्रीकम् , अतो न तपादावपि हेस्वन्तरसम्वादनु पपत्तिः । अस्तु ताई तत्र तदा गत्वरं हेन्वन्तरम्' अत्राह अत एव तदा लावण्यामा अपचैतन्याभावस्याप्यन्यप्रयोज्यत्वादेव, तादृशान्यपदार्थसदभाबाद मस्त्यात्मा शरीरा तिरिक्त चैतन्योपादानम् । इति व्यवस्मितम् सिबम् ॥६॥ मूलम्-न प्राणादिरसौ, मान किं, तबाषेऽपि तुल्यता । तदभावादभावश्वेदात्माऽभावे न का प्रपा : ६८|| पर आइ-भसौ चैतन्याभावप्रयोजकाभाषप्रतियोगी प्राणाविर्न किन्तु यात्मा, अत्र कि मानम् ! उत्तरवाघाह प्रतिबन्धा -'ग्राणायभावस्यैव' इति शेषः, तद्भावेऽपि= चवन्याभावप्रयोजकाभाषप्रतियोगित्वेऽपि, तुल्यता किं मानमित्यर्थः । तदभावात् प्राणाबमायान अभाषः 'चैनन्यस्य' इति शेष, तधा चाऽन्यथाजपपतिरेव मानमिति चेत् ! तर्हि आत्माभावे न चैतन्याभावः, 'इत्यत्र य' इति शेषः, का प्रमा=किं प्रमाण न फिशिद् , अन्यत्रानुपपचेरेकन पक्षपाताऽयोगादिति भावः ||८|| लावण्यादि में सात्मकशरीरप्रयोग्यता की सिद्धि] मृतदेह में यदि लावण्य नही है तो क्या है कि यह वेहमानहेतुक नहीं है, क्योंकि पदि यह मानदेतुक होता तो जैसे हमात्र हेतुक होने से वेगस रूप देह के रहते मही नट बोता उसी प्रकार देह के रहते देह के लावण्य का भी नाश न होता । देहरूप के प्रति देहापपय का रूप भी कारण होता है, अतः उसे मात्र देतुक करना मसंगत है'-या करना ठीक नहीं है, क्योंकि हमारहेतुक का अर्थ लामग्री ही सममियतसामग्री से अन्य । शाशय यह है कि जब देशसमकसामाग्री का सम्मि धान होता है नए नियमेन देहरूपजनक्सामग्री का भी मम्मिधाम होता है मता रे के साथ या पैन के अन्यहित उत्तर उत्पन्न होने के नाते देहरूप को पेहमानहेतुक कह दिया जाता है। मनः एका का देह से अन्य रे होने पर भो उत्ता से उसे मानतुक करने में कोई मौचिस्थमा नहीं है। पदि यह कहें कि-'मृतदेह में मायग्य का अभाव होने से उसे हमापनयन मान कर किसी ऐसे कारण से सम्म मानना चाहिये. भो मृतपेट में नहीं रहता'-तो उसी प्रकार अनन्य के सम्बन्ध में भी याद कहा जा सकता है कि तम्य भी बेइमात्र जन्य नहीं है अपितु उनका भी कोई पंसा अम्य हेतु है जो मृतदेह में नहीं रहता। उसके मरने से ही मृतदेह में चैतन्य की उत्पत्ति नहीं होती। तो इस प्रकार मिल कारण के अभाव से मृतदेह में बनाय का अभाव होता है का कारण धात्मा की है, इस रीति से बेह से भिन्न आत्मा को सिद्धि निर्विघाव है ॥६७।। अचेतन्य का प्रयोजक प्राणाभाव है या मामाभाष ] १.वी कारिका में 'मृतोह में बता का सभाष शणामाव के कारण इस कथन के प्रतिपापी रूप में 'मृतदेह में भारत के अभाव से चैतन्याभाव होने का प्रतिपादन कर रहे है।
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy