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शास्त्रवासिनुच्चय-तरक र मो० ॥ 'यद् यद्धर्माविर्क, न तत् तद्भावे न भवति' इत्या अभिचारमाप समाधते
मूलम्- म च भावण्यकार्कश्यश्थामत्वैमिचारिता ।
मृतदेहेऽपि समायावष्यक्षेणैव संगतः | | F जयकारण। तीन सदेव तेजप सदभावाद व्यभिचारितेति वाष्यम् अध्यक्षेपौव सं गतः परिदात् , मतदेहेऽपि सद्भावात् तेषा, विना विषय प्रत्यक्षाऽयोगात् ॥६६॥
ननु रूपमा सस्रोपलभ्यते, न तु नवदापग्रहजन्यं पावण्यादि । किरुष, उक्त नियमोऽप्यसिद्धः, पायजरूपादिना न्यभिचारात् । तदेवत्व-तस्संख्या-तत्परिमाणोपर्यवस्थापितकराप्रपातप्रत्यक्षोपसम्पत्याना(धना)पत्तिभिया तम परमाणुपर्यन्तनाचान पुन पगमात् । अत पाह--
चतम्य को दिई का धर्म और देह का कार्य माना जायगा मो जैसे शोषित पेर में चैतन्य रहना , और उपसम्ध होता है, उसी प्रकार. मृतदेह में भी उभे राना पाहिये और उपलब्ध होना चाहिये, किन्तु प्रत्यक्ष योग्य होते हुये भी चा मृतदेह में उपाय मदों होता। अतः योग्यानुपलब्धि से मृतोद में उसका मभाव निर्विवादरूप से मिस है। यदि कई कि-"शन्य मीवित देह में ही रहना, मृतदेश में नहीं रहता, असा उनकी अपलब्धि नहीं होती" तो यह काना ठीक नहीं है, क्योंकि देश के राते जब बैतम्य का अभाष दो आता है तो उसे वेद का धर्म एवं पा का कार्य नही मामा जा सकता । थनि बजीवित देह काही धर्म अथवा कार्य होता तो उसे देहत्य और गत कप के समान मृतदेह में मी रहना चाहिये था, किन्तु मृप्तदेह में या नहीं रहता। अतः घटत्य भोग घटरूप के समान या जीवित देह का मो धर्म या कार्य नहीं हो सकता ॥५॥
मिनार की भाशका और परिहार] कारिका १६ में जो जिसका धर्म या कार्य होता है, उसके रहते उसका प्रभाव नही होसा' इस नियम में ग्यभिचामाशा प्रस्तुत कर उसका समाधान किया गया है
"लापण्य, कार्कश्य, और पयामता ये जीविनागरीम के धर्म पयं कार्य है, पर मृतपर में उनका अभाव हो जाता है, पेत्र के रहने देह के न धर्मों का मभाव हो जाने से यह नियम व्यभिषरित हो जाता है कि 'जो जिसका धर्म या कार्य होता है, उसके राते उसका प्रभाव नहीं होता। शराः मृतव में वैनग्य का अभाव होने पर भी उसे जीवित बह का धर्म और कार्य मानने में कोई दोष नही है"-इस शहा के उत्तर में प्रकार का कहना है कि सक निगम में बनाया गया ग्यभिचार असंगत है. क्योंकि मृह में समका अभाव होता तो मृतषेत्र में उसका प्रत्यक्ष न होता, पर वे धर्म मृतदेह में भी प्रत्यक्ष देसे आते है. मतः मृतदेह में उसका अस्तित्व धोने से उक्त म्यभिचार ठीक