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शास्त्रवासिमुच्चय-साबको १५-६२ सूलम्-पकत्सथाऽपरी नाते तन्माण तथाविधः ।
पतस्तदपि नो भिन्न ततस्तुन्य च तसयोः ॥११॥ यत-यस्मादापाततः प्रतीयमानाद् निमित्ताव , को-भूतसंधानो देहादिरूपः तथा देहादिरूपत्वेन, भारी पधादिरूपा, तामात्र भूतसंघातमात्रत्वे, अपिर्गम्यते, तन्मानावेऽपीप, तथाविधा देहादिरूपी न, इति एताशी विभागः 'उच्यते इति चोपः । वदपि निमित्तं नो भिन्नं भूतातिरिक्तं, तवान्तरप्रसत्रात, ततः तस्मादेतोः, तम्रोः देठघटादिरूपयोर्भूतसंघातयोः, तन-भूतमात्रत्वं च, तुल्पम् । अतः पारीरस्य नामत्वमिति भावः ।।६।। अनभिज्ञः सन् पूना शहतेमूलम्--स्थावेतत्-भूतजस्वेऽपि प्राचादीनां विचित्रता ।
लोकसित सिंबैव न सा तन्मात्रजा न तु ॥१२॥ स्थादेतद्-भूत प्रदेशप याबादीना-पाषाणादीना विचित्रता-पटादिभ्यो विलक्षणवर्णस्प शादिरूपा लोकसिद्धेति, न कि 'सा नास्तीति वक्तंशययते, प्रत्यक्षसिदस्यायस्य प्रतिक्षे. पाऽयोगात्, तथा शरीरविचित्रताऽत्युपपत्स्थत इत्याशयः ! अत्राह सिदैव सा न सा प्रतिक्षिप्यते, 'तु पुनः जन्मात्रजा न-भूतमात्रमा न ||१२॥
पूरा विश्व केवळ भूतात्मक है। भूत से भिन्न कोई तस्य नहीं है, मतः मेएक का सर्वथा मभाष होने से भूसों के शरीर पय घटादिरूपसंघातों में मेद मानमा उबितरहीं हो सकता। यह तय उफ्तरीमिसे शान्ति से विचार करके निर्धारित करने योग्य है ॥६॥
[देह मौर घटादि तुल्य होने से घटादि की तरह शरीर भी आत्मा नहीं] सूतो का केवल संघातरूप होने पर भी पक संघात देहरूप होता है मौर दुसरा घराविरूप संघास देवरूप महों होता, इस घिभिग्नता का जो निमित्त आपाततः प्रतीत होता है। यह भी भूतों से भिन्म नहीं माना जा सकता, क्योंकि उसे भूतो से मिन मानमे पर सरवान्तर भर्यात अभूत भारमतस्य का प्रसन्न हो जायगा । अतः दोनों प्रकार के संघासों में भूनकता समान होने के कारण पठादिरूप संघात को अनारमा मौर देवरूप संघात को मारमा कहना उचित नहीं है। '
६२पी कारिका में मनजान हो पेसे पुरुष की ओर से पुनः पक शङ्का ऊठायी गयी है, पर यह कि-"जिस पाषाण आदि पर घट आदि पवार्थ समान रूप से भूवमान से जाय हैं तथापि पागण आदि में घर आषि को भपेश्ना विलक्षणता लोक में भी जाती है। पर नहीं कहा जा सकता कि 'घर शायि के पर्ण, स्पर्श भावि से पाषाण मावि के धर्ण, साश मादि विलक्षण नहीं है। तो जिस प्रकार भूसमात्रात्मक होने पर भी पापाप घट में विलक्षणता होती है, उसी प्रकार शरीर और घंटादि में भी भूतात्मकता समान होने पर भी चेताम-भषेतमा विलक्षणता क्यों नही मानी जा सकती "इस शंका का कारिका में यह उत्तर दिया गया है कि पाषाण और घर की परस्पर घिसक्षमता जो