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________________ anwarmawammewww.a.0 भास्मासिमुच्चय-स्तबक १ को० ५५ मव वाचमिनिहारीरस्वेनैव पेसम्योपाबानत्वं, धमिग्राहकमानेन विशेषणस्यैव बेबन्योपादानतया सिद्धे, तरवेन परचैतन्यनिमित्त्वादिति निष्कर्ष तथा न न मिशेषणकतोऽपि संपातविशेष इति भाषः । पस्तुतः शरीरपरिगामिनामेव भूतामा नआत्मोपग्रह विना वैचित्र्य, तदुपग्राम वत्सहकारित्व चारद्वारा तया व पारीरं भोगसमानाधिकरणगुणसाश्य, भोगसाधनस्वात् अगाविषद इत्पा मास्पर्षम् ॥५५॥ समभिपत मान्य किसी धर्म को मेवक मामा माय? मता विनिगमता का विरह होमे से सामकरण के समान इसके पनियत भग्य अनेक धर्मों को भी मेरा मानना पडेगा"सो यह कहना चोक नह है, क्योंकि विनियमनापि का दोष तो पूर्वसिसवस्तुओं में ही होता है और जो धर्म प्रथमतः सिच नहीं है किन्तु किसी विशेषप्रयोजन के लिये ही उसकी वारपास जाती है, उस प्रोजन में पूर्वडिसों में मौर इस मूतमसिद्ध वस्तु में विनिगमनाविर का दोष नही होता. अन्यथा उस नयी वस्तु की कम्पनर ही निराधार हो आयगी। [चैतन्य का उपादान कारण शरीर नहीं है] यदि को कि-"जीवित शरीर में बेतमा की स्पए प्रतीति होती है अनः शामिविशिष्ट शादीर को ही बताय का उपाशन मानना चाहिये, न कि यात्मा को"-नो घर गेकमहीं है, क्योंकि जिस प्रमाणा से मात्मविशिष्य शरीरकप धर्मी की सिद्धि होतो है उससे विशेषण भूत भारमा दी थैतन्य के उपादान रूप में सिद्ध होता है। मामा के चेतन होने से ही मात्मविशिष्ठ शरीर में बननता की उपलधि होती है। इसलिये शरोरामक मृतसंपात और धादिका भूतसंघात में चैतम्यात्मकयिशेषणमूलक भी पैलनग्यनहीं माना जा समता, क्योंकि देवनाम्मा का शस्तित्व माने पिना शरीर में चैतम्यकप विशेषण के अस्तित्व का ही असम्भय है। सब बात तो यह है कि-भामा के महयोग के बिना शरीररूप में परिणत होने पाले भूतो में घटादिका में परिणत होने वाले भूतों की अपेक्षा बैलमण्य ही नहीं हो सकता । भतः शरीराम्मक भूतो को मामा का सायोग भाषश्यक है। यह सहयोग सहकारितारूप होगा भौर सहकारिता महराद्वारा होगी | काने का तात्पर्य यह है कि रीर की उत्पत्ति में मतो समाम मात्मा भी अहहारा कारण है. इसकी सिद्धि अनुमान द्वारा की जा सकती है। अनुमान का प्रयोग इस प्रकार होगा,-"शारीर की उत्पत्ति भोक्ता पुरुष के गुण से होती है, क्योंकि यह पुरुष के मोग का सामन होता है, 'यो वहातु जिसके मोग का साधन होती , इसके गुण से उत्पन्न होती है, जैसे माला भारि पस्तु-माली के भोग का साधन होने से उसके गुण-माला मादि बनाने की विधि का शान, माला आदि तैयार करने को इच्छा, माला भारि सैयार करने के -पर नतम्या' इति पाठान्तर', ३६ नुसारेण च तवनाशविशिमगिरस्पेन, पर केवल पारीरस्य चैतन्यनिमित्रायमेष न नूपावनभित्पर्यः ।
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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