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________________ ... १५३ स्था का का व .पि. ननु स्थूलत्वमपि नाशुसवातमात्र व्यणुकादावभावाद , किन्तु संङ्गाप्त विशेष एव पयं च चतन्यमपि घटादिश्यापूचभूतसंपातषिशेष पवेति नाजुपपतिः, इति शकते मूलम्--अथ भिन्नस्वभावानि भूताम्येव यतस्ततः । ____ तत्सहासेषु चैतन्यं न सर्वेष्वेतदप्यसत् । ५३॥ अथ पतो मतान्य' शरीराम्भकाण्येव, भिन्नस्वभावानि घटाघारम्भफस्वभावविलक्षणस्वभाषानि । ततस्तत्संबातेषु शरीरेषु चैतन्य न सर्वेषुः पर्व च संइन्पमान विशेषतः संपातषिशेष इति भावः । अत्राध- एनदयसत् ॥५॥ मूलम्-स्वभावो भूतमा प्रवे सति न्यापाद न मियते | विशेषणं बिना यस्माद् न तुल्याम विशिष्टता ||५४॥ होगा, क्योकि पुरुष के समान ही घट आदि वस्तुगे भी ज्या देशना से युक्त होगी। 'घट भादि में पुरुष के पैलक्षण्य का अभाष भी हो है' यह नहीं कहा जा सकता पयोधि घट भात्रि की प्रतीति मधेशमरूप में होती है अतः उन में वेताप में प्रतीत होने वाले पुरुष के लक्षण्य का मभाष प्रत्यक्षमाधिन है ५५|| [शीर और घर में चन-य और जडता भूतलक्षण्पप्रयुफ़ नहीं है "स्थूलव अणुषों का सामान्यसात मात्र नहीं है क्योंकि घणक भावि में मणुको का समाप्त होने पर भी स्थूदाय नहीं होता अतः धुलाम असे अणुषो का विशिष्ठलङ्गलास रूप से ही तम्य भी मूसों का सामाग्य संमानमात्र न होकर भूतो का यह विशिष्ट संघात है जो घट भाव में न होकर वारीर में ही होता है। और ऐसा मानने पर भूतसन्ययार को स्वीकार करने में कोई भापत्ति नहीं हो सकती ।..५५वी कारिका में इस बात को प्रस्तुत कर इसे असत् कहा गया है। कारिका का अर्ष इस प्रकार है शरीर की प्रथमा मिन भूतो से होती है घट मादि की रचना करने वाले भूतों से स्वभावतः भत्यातभिन्न होते है, इस लिये शरीयत्मकभूतसंघात में बैतस्य मौर घटापात्मकभूतसंघात में भौतम्य कायोमा सर्वथा सुसंगत है। आश्य या किस होने वाले भूतों के येळक्षण्य से ही उनके संघातों में पैसक्षम्य होता है और उस पैकक्षाय के कारण ही पारात्मकभूनसंघात घेसन गौर घरापात्मनससंघात मतम होता है। इस सम्पन्ध में मूलप्रन्धकार का कथन है कि भूतपेनम्यवाही की यह पास भी असा ॥५३॥ [भेदकविशेषण के बिना भूनों का स्वभाव भेद मप्तम्भवित है। शरीर के भारम्भक भूत और घटादि के भारम्मक भूत शुद्धभूतमा है, उनमें कोई अतिरिक्त मेवक ही है, अतः उममें समायभेद की कल्पना मुश्किसंगत नही,
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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