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________________ स्या क० टीका व वि. वि. मूलन-भेदे सवदले यस्मात् कर्थ सद्भावमश्नुते ! तवभावेऽपि ताव सदा सर्वत्र वा भवेत् ॥५०॥ भेरे स्थूलत्वस्याशुभ्यः सर्वथा पृथग्भावे, मदले सन् तत्-स्थलल्वं, यम्मान कथं समाजमश्नुते-ससान्यवहारं कथं प्राप्नुयात् ! सर्वधा द्रव्यपृथम्भूनत्वे, शनजवदसवप्रसङ्गात् । किश्व, सदभावेऽपि दलाभावेऽपि, सदस्यूनत्योपादे. 'अभ्युपगम्यमाने' इति गोषः, कालनियम हेत्वभावात् सदा, देशनियमहेन्रभावाच सर्वत्र वा भवेत्, 'वत' इति योज्यते । ____ मथ श्यणुकादेरेव महचोपादानवाद नाऽदलात्कम् ,अन्यादशमलत्वं चाप्रयोजक, समवायेन अन्य सस्थापरिहन्न प्रति तावात्म्येन न्यस्य हेतुत्वाच नातिप्रता रति चेत् ! म, समायनिरासाद, ध्वेससाधारपयेनाऽपृथग्भावेन अन्यत्वावकिछन्न प्रत्येव द्रव्य हत्वौचित्याश्य, TM बिस्तरः ।। भिकर्ष यह है कि पारीर में सक्रियत्व की प्रतीनि परम्पग सम्बन्ध प्राग पाणि माधि अषयों की क्रिया से ही उगमन हो सकती है अतः पाणि आदि अवयों की सकियतावशा में भी शारीर निस्किय ही रहता है. या कभी भी सक्रिय नहीं होता, फलतः शरीर में सक्रियरष और निस्क्रियत्य रूप बिशधों के समावेश की भापनि न बोमे से पाणि भादि अवयों से भिाल शारीर को पृथग्य मानने में कोई बाधा नहीं हो सकती।" [पूर्वपक्षसमाप्ति नेपालिकों की इस पाहा का परिहार करने के लिये ही मेवेतदवले' इत्यादि ५०बी कारिका की रचना की गयी है, कारिका का अर्थ इस प्रकार है [स्थूलत्व को मिन्न मानने पर निष्कारणःन की आपत्ति-उत्तर पक्ष] स्थूलत्व-मधन्य को यदि स्थूल माने आने वाले वध्य के अाधों में सषया भिन्न मामा जायगा तो उसका कोई हल मावान कारण न बन सकेगा, क्योंकि भावों से भिन्न किसी इश्य का अस्तित्व विवादमस्त है, अत: अभिन्न प्य को उस का उपा दानकारण मानमा सम्भव नहीं है, भीर अणुव्रय एथं स्थूलत्व में आयन्तमेव मानने पर अश्यों को भी जस का उगमान नहीं मामा जा सकता, क्योंकि मत्यम्त भिन्न बस्सुमों में उपादाम-उपादेयभाय प्रमाणसिच नहीं है, इस प्रकार शूलत्व जब भदलउपादानहीन होग, तय बाद सस् के रूप में कैसे व्यवान छो सकेगा? फलतः द्रष्य से सर्वथा भिन्न होने पर शयनंग के समान स्थूलन्य भी मलद हो जाया | पति या कहा माय कि-उपादान के अभाव में भी शलन्य की उत्पसि मान लेने से उसके अस्तित्वलाम में कोई बाधा न हो सकती-तो यह ठीक नही है क्योंकि कारण के अभाव में भी कार्य की उत्पणि मानने पर 'उतपति किस काल और किस भानय में हो इस बात का कोई नियामक न होगा, अतः स्थूलस्य की उत्पत्ति किसी नियत समय मौर भियत आनय में न होकर सभी समय और सभी क्षाथयों में होने लगेगी, जो अनुपलम्भ से बाधित होने के कारण सर्वथा अस्वीकार्य है।
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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