SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 196
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्या का टीका प हिं० वि० १५१ मनु-"न मधूलन्यं परमावभिन्न गुणगुणिनोभ्रंशात्, कारणपरत्व-कारणमारवप्रचयक्रमणोत्पन्नस्य तस्माऽवयविनिष्ठत्वाच्च । न चावयविनि मानामामा, विलक्षणसंस्थानाकछेदेन सन्निकर्षात् यद्र्यगतघटत्वादिग्रहस्ततळ्यक्तरुत्पादायिनासभेदा. दिप्रत्ययान्यथाऽनुपपस्या पृथगवविसिद्धः । न चाऽऽभूतत्वाऽनावसत्त्वाभ्यां वरमेदः, वयविभागका माश तो प्रतियोगी की उपलब्धि का विरोधो होता है, असे सम्भामो के संयोग से जहान है, यदि अशुयों का विभाग कर दिया जाय तो सम्न की उपलब्धि नको होगो । किन्तु अर्थान्तग्गमनलक्षणनाश प्रतियोगी की उपलधि का विरोपी नहीं होगा, भता पटास्माकपरिणामरूप जो सन्तुनाश उसके होने पर भी नन्तु की अपकम्चिनिर्वाध रखती है ||४| “अवविसिद्रि के द्वारा परमागतस्थूलप मानने में राष्ट्रा-पका] यह शंका होती है कि-"स्थूलन्य-महान परमाणुओं से अमिन्न नहीं हो सकता, क्योंकि गुण और गुणी में मेर होता है, स्थूलत्व गुण एवं परमाणु मुणी हैं, अतः उनमें शभिन्मना असम्भव है। दूसरी बात यह है कि स्कूटरव कहीं कारणबाहुग्ध से, कहीं कार णमहस्व से भौर कहीं प्रचय-शचिलसंयोग से उत्पन होना है। अतः यह भषयी में ही रहता है, वापरयों में हो रहना । तो जब स्थूल व परमाणुओं में रहता बीबी, तब उसे परमाणुम्बा होने का स्पसर कहाँ है! यदि यह कहे कि 'अवयरी में कोई प्रमाण नहीं है तो यह ठीक नहीं है, कयोंकि विलक्षण संस्थान गे साथ इन्द्रियसनिक होने पर जिस प्रण्य में घटत्व बादि की प्रतीत होतो ति लस द्रव्य श्री 'उत्पन्लो घटः, गरो घटः' इस प्रकार उपति गोर माश की नीति होती है ! यह प्रतीति घटामि द्रव्य को गतिरिक्त अपयशी मागने पर ही सम्भव है, क्योंकि मिस हाय में घटत्व कादि की प्रताति होती है उले परमाणुरूप मानने पर परमागुभों की उसपति न होने से घटकर आने वाले दृश्य की भी अन्पति आदि न होगी। फतः घट के उपधि-पिनाशकी प्रतीति न हो सकेगो । भसा परमाणुषों से अतिरिक्त पद आदि अवयषी का मस्तित्व मानना आवश्यक है। आवृत्तव-अनावृतत्व के विरोध की शंका और समाधान| यदि यह कहा जाय कि-'पट के पक भाग को किसी वस्तु से ढकने पर घट थाात भी कहा जाता है और अनावृत भी करा जाता है, घर में भावृतब मौर मनाचूतस्य म दो घिरोधी धर्मों का अस्तित्व नमी हो सकता है जन्य घट एक सक्तिन होकर परमाणुषों का समूबरूप हो, कयोकि घर के परमाणुग्नमूदरूप होने पर अस समूह के पक घटात्मक भाग पर थावरण और भूप्तरे घटान्मक भाग पर आवरणाभाष होने से घट में आतष और अमावृतत्य का समावेश हो सकता है। पर यदि घट पकयक्ति कोगा तो घर एकसमय में या तो भान दी हो सकता है, या तो भगातही हो सकता है, दोनों मह हो सकता । अतः परमाणुगों से मिल एक अतिरिक्त भवयवी की कल्पना उचित नहीं है।" या. वा. २
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy