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शास्त्रवार्त्तासमुष्य - स्तबक १ श्लो०४९
न विजातीयसंयोगस्य द्रव्यहेतुत्वाऽसिद्धेः तत्रापि हेत्वन्तरापेक्षायामवश्याश्रयणीयेन स्वभावापरनाम्ना परमाणुगतातिशयेनैव द्रव्योत्पत्तिसम्भवात्ः स चातिशयः शक्तिः अन्यो वा इत्यन्यदेतत् । एवं च दशतन्तुका देवरमतन्तु संयोगवियोग कमेणेव प्रथमतन्तु संयोगवियोगक्रमेणापि नवतन्तुकोपलब्धिनिराबाधा, नवपर्यन्तैरिव द्वितीयादिभिरपि नत्रतन्तुभिरतिशयितैर्नवतन्तुकारम्भात् । न चैत्र प्रतिलोमक्रमेणानन्तपटकल्पनाऽऽपत्तिः, द्वितीयमादाय नवतन्तुकस्येव तृतीयमादायाष्टतन्तुकस्यापि स्वीकर्तव्यात्वादिति वाच्यम् ; इष्टत्वात्, एकानेकस्वभावाऽविरोधात् । एकतन्तुसंयोगविगमाऽभिव्यञ्जकाभावादेवाष्टतन्तुकाद्यनुपलत्रेः । अत एव महति पटे 'एकः पटः' इति प्रतीतिननुपपन्ना अङ्गुलीभूतलसंयोगात्रच्छदेन पाण्याद्यनन्तसंयोगानुपलब्ध्यादिवद्वा पटान्तरानुपलब्धेरिति दिकू । पट के असमवायिकारणभूत तन्तुद्वयसंयोग का नाश होने पर हितन्तुकपट का नाश और उस नाश से त्रितन्तु कपट का नाश होकर चतुस्तन्तुक पट का नाश होगा, इसी प्रकार चतुस्तन्तुकपट की पुनः उत्पत्ति के लिये द्वितन्तुक त्रितन्तुकपों की उत्पत्ति भी माननी होगी। पूर्वपट का नाश होने के बाद सोधे तन्तुओं से चतुस्तन्तुक पट की उत्पत्ति ग्रामने पर चतुस्तन्तुक पद के समय द्वितस्तुक त्रितन्तुक पट का अस्तित्व न होने से उनके नाश को कल्पना तथा अगले पथ की उत्पत्ति में पूर्वपद की अपेक्षा न होने से
स्तन्तुकपट की उत्पत्ति के लिये द्वितन्तुक त्रितन्तुकपट की उत्पत्ति मानना अनावश्यक होगा । अतः पूर्वपट के रहते पटान्तर की उत्पत्ति का पक्ष ग्राह्य नहीं हो सकता ।
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पूर्व पर के साथ नये तन्तु के संयोग से पटान्तर की उत्पत्ति मानने में एक यह भी बाधा है कि जिस विजातीय संयोग से पट की उत्पत्ति होती है उस के प्रति तन्तु कारण होता है अतः पट में उस संयोग की उत्पत्ति न हो सकने से पूर्वपट में उत्तरपद की उत्पति का मानना संगत नहीं हो सकता। फलतः यही बात न्यायोचित प्रतीत होती है कि अणुओं का विजातीयसंयोग से अतिरिक्त अवयचीद्रश्य की उत्पति होती है, और उत्तसंयोग के नाश से द्रव्य का नाश होता है। अतः अणुओं का विभिन्न द्रव्यरूप परिणमन मानमा असंगत है ।"
[परमाणुगत अतिशय से ही द्रव्योत्पत्ति सम्भवित है - उत्तरपक्ष ]
उक्त बात के विरुद्ध ग्रन्थकार का कहना यह है कि वह ठीक नहीं है क्योंकि 'विजातीयसंयोग द्रव्य का कारण होता है, यह कथन अप्रमाणिक है, क्योंकि यह मानने पर भी यह प्रश्न ऊरेगा कि जिस विजातीयसंयोग से द्रव्य की उत्पत्ति होती है उस बिजातीयसंयोग का कारण कया है ? इसके उत्तर में यही कहना होगा कि परमाणुगत अतिशयरूप परमाणुओं का स्वभाव ही द्रव्योत्पादकसंयोग का कारण है। तो फिर परमाणुगत अतिशय से विज्ञातीयसंयोग की उत्पत्ति मान कर उसके द्वारा द्रव्य की उत्पत्ति मानने की अपेक्षा उक्त अतिशय से सीधे द्रव्य को दी उत्पत्ति मानना अधिक युक्तिसंगत है। 'द्रव्यों का उत्पादक यह परणाणुगत अतिशय कारणनिष्ठ कार्यानुकूल