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________________ १५८ शास्त्रवासिमुच्चय-स्तषक १ प्रलो०४१ तथापि "तन्त्वादिपरिणतानामानां कथं पटादिपरिणामः १ द्रव्यस्थानीयस्य परिणामस्य द्रव्यान्तरस्थानीयपरिणामप्रतिबन्धकत्वात् । अन्यथाऽन्त्यावयविनि द्रव्यान्तरोल्पत्तिप्रसङ्गात् १" इति चेत् ? न, अन्त्यावयविन्यपि पटादौ खण्डपट-महापटाधुत्पत्तिदर्शनात , पटत्वेन पटानाधारत्वाच्च 'पटे पट" इत्यप्रत्ययात् ।। होता"-यह नौका नहीं की जा सकती, क्योंकि अणुओं में स्वभावमेव मान लेने से विभक्तदशा में अचाक्षुषत्व और संहनदशा में चाक्षुषत्व इन दोनों विरोधी धर्मों का उनमें सामञ्जस्य हो सकता है । यह कल्पना कोई अपूर्व कल्पना भी नहीं है क्योंकि दरस्थ और समीपस्थ रेणुकों में अचाक्षुषत्व एव चाक्षुषत्वरूप स्वभावमेद प्रत्यक्षसिद्ध है। इस सन्दर्भ में यह शङ्का हो सकती है कि-"विभक्तअवस्था में वस्तु अचाक्षुष और संहत अवस्था में साक्षष होती है' सह नियम नहीं माना जा सकता, क्योंकि निकटस्थ पुरुष को विभक्तरेणु का भी साक्षुष तथा पिशाच के रूपमें संहतमणु का भी अचाक्षुष होता है यदि उक्त नियम माना जायगा तो विभक्तरेणु में निकटस्थपुरूष के अचाक्षुषत्व और पिशाचरूप में संहतअणुओं के धाक्षुषत्व का अतिप्रसङ्ग होगा।"इस शङ्का के उत्तर में बहुत से विद्वानों का कहना है कि "जो पदार्थकण जिस शाता को जिस स्थल से विभक्त अवस्था में अचाक्षुप होते हैं वे ही पदार्थकण विशेष प्रकार से संहत होने पर उसी माता को उसो स्थान में चाक्षुष होते हैं। इस प्रकार शाता के भेद से नियम की व्यवस्था करने पर उक्त दोष नहीं हो सकता।' पिशाबरूप में संहत अणुओं का चाक्षुष न होने के बारे में अन्यतान्त्रिकों का कहमा है कि "जो उयणुकादिस्वरूपअणुसंधान चाक्षुष होते हैं उनके स्वरूप में प्रविष्ट अणुसंयोग पिशाबात्मक अणुसंघात के स्वरूप में प्रविष्ट अणुसंयोग से विजातीय होता है। यह विजातीयसंयोग हो द्रव्यसाक्षात्कार का कारण होता है। पिशावात्मक अणुसंघात में इस विजातीयसंयोग के न होने से उसका साक्षात्कार नहों होता।" [तन्तुपरिणामआपन्न अणुओं का पटरूपपरिणाम कैसे ? स्थूल द्रव्य को अणुओं का परिणाम मानने पर यह प्रश्न ऊठता है कि-'तन्तु आदि रूप में परिणत अणुओं का पटआदिरूप में परिणाम कैसे होगा १ क्योकि अवयवों से अतिरिक्त अवयवी द्रव्य का अस्तित्व मानने वालों के मत में जैसे पकद्रव्य दूसरे द्रव्य की पुत्पत्ति में प्रतिबन्धक होता है और इसी लिये पक द्रव्य में उपब्ध अणुमों में ट्रष्याम्तर की उत्पत्ति नहीं होती, उसी प्रकार आगुपरिणामवादी के मत में 'अणुओं का एक परिणाम उनके दूसरे परिणाम में प्रतिबन्धक होता है' यह नियम माने जाने के कारण तन्तुपरिणाम-पटपरिणाम का प्रतिबन्धक होमा, अतः तन्तुपरिणाम के रहते पटपरिणाम की उत्पत्ति नहीं हो सकती । 'पक द्रश्य के रूप में अणुओं का परिणाम, द्रध्यान्तर के रूप में उनके परिणाम का प्रतिबन्धक होता है' यह नियम यदिन माना जायगा, तो अन्त्यअवयविस्थलीय अगुपरिणाम भी परिणामान्तर का प्रतिबन्धक न होगा - भौर उसके फलस्वरूप अन्त्यावयवी से भी द्रव्यान्तर की उत्पत्ति का प्रसङ्ग होगा।"--
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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