________________
स्या० का टीका व हिं० वि०
अत्रेयं प्रक्रिया-अथनामे वैकत्वसंख्यासंयोगमहत्वऽपरत्वादिपर्यायैरुत्पत्तिः, बहुत्वसंख्याविभागाशुपरिमाणपरत्वादिपर्यायैश्वानुत्पत्तिः, न च विशिष्टाऽण्यतिरिक्तमत्रयविद्रव्य मऽस्ति । न चैव विभक्तस्येव संडतस्याप्यणोरचाक्षुपत्वं स्वादिति वाच्यम्, 'नानास्वभावत्वेन तस्य तदा चाक्षुषजननस्वभावत्वात्, विप्रकृष्टसन्निकृष्टेषु रेण्वादिषु तथास्त्रमान्यदर्शनात्, प्रतिप्रतिपत्तारं च प्रति नियमेनाऽनतिप्रसङ्गात्' इति बहवः । 'त्र्यणुकत्वादिघटकसंयोगानां पिशाचत्वादिघटकसंयोगभिन्नानां वैजात्येन द्रव्यसाक्षात्कारत्वावछिन्न प्रति हेतुत्वात्' इति अन्यतन्त्रानुसृताः ।
[उत्पत्ति के पहले भी स्थूलद की विद्यमानता __ स्थूलत्व' स्थूलपदार्थ 'भूत'- रूपयुक्तपरमाणुओं के संघात से भिन्न नहीं होता । सहन्यमान परमाणुओं के रूपयुक्त होने से उनके संघातरूप स्थूलत्य में चाक्षुषप्रत्यक्ष की योग्यता भी आ जाती है । स्थूलत्व यतः परमाणुओं के संघात से भिन्न नहों होता अतः वह परमाणुओं का ही कथञ्चित् पकत्वपरिणाम होता है, अर्थात् स्थूलत्व पकत्व में परिणत परमाणुस्वरूप ही होता है । इस प्रकार स्थूलत्व में परमाणुसंधातभिन्नमेद से परमाणुरूपता का साधन करने से हेतु और साध्य में अवैलक्षण्य की भी भापति मही होती, क्योंकि दोनों में स्वरूपतः ऐक्य होने पर भी हेतुतावच्छेदक परमाणुसंघासभिन्नभेदत्व और साध्यतावच्छेदक परमाणुरूपता के मेव होने से चैलक्षण्य की उपपत्ति हो जाती है। "संहन्यमान परमाणु अनेक हैं, अनेक का पकरवपरिणाम अयुक्त है"-यह शंका भी नहीं की जा सकती, क्योंकि अनेक की एकान्ततः पकात्मकता असंपत हो सकती है पर कश्चित्-सापेक्ष पकामकता असंगत नहीं हो सकती, अर्धात् परमाणु व्यक्तिरूप में अनेक होते हुये भी समूहरूप में एक कहे जा सकते हैं। इस प्रकार समूहरूप में एकीभूत परमाणु ही स्थूलत्व स्थूलपदार्थ है, और जब स्थूलत्व पकात्मनापरिणत परमाणुरूप ही है तब द्रव्य के रूप में उत्पत्ति के पूर्व भी स्थूलत्व का सत्य निर्विवाद है।
[परमाणुओं से स्थूलद्रव्योत्पत्ति की प्रक्रिया] अणुओं से स्थूल पदार्थों की उत्पत्ति की रोति इस प्रकार है
विभिन्नस्थानों में बिखरे हुये परमाणु जब इकडे होते है तब वे पकत्यसंख्या, परस्परसंयोग, महत्परिमाण, अपरत्व-सामीप्य आदि पर्यायों-आगन्तुकर्मों के साथ उनकी नयीं उत्पसि होती है । और जो पर्याय उनमें पहले थे, जैसे बहुत्व, विभाग, अणुपरिमाण, परत्व-दूरत्व आदि, उन पर्यायों से उनकी नियत्ति होती है। इस लिये पकत्र होने की दशा में परमाणु अनेक, विभक्त, अणु और दूरस्थ न होकर एक, परस्परसंयक्त, महान और निकटस्थ हो जाते हैं, इसी से उस समय यह पक महान द्रव्य है। इस प्रकार का व्यवहार प्रवृत्त होता है । इस व्यवहार के लिये विशेषपर्यायों से विशिध अणओं से भिन्न किसी अषयची द्रष्य की उत्पत्ति मानने की आवश्यकता नहीं होती 1-"विभक रहने पर जैसे अणु चक्षु से गृहीत नहीं होते, वैसे संहत होने पर भी उन्हे बक्षु से गृहीत नहीं होना चाहिये, क्योंकि विभक्त और संहत अणु में भेद नहीं