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श्या० क० टीका व हिं० वि०
मूलम् - नासत्स्थूलम्बमण्णादौ तेभ्य एव तदुद्भवात् । सतस्तत्समुत्पादो न युक्तोऽतिप्रसङ्गतः ॥ ४६ ॥
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अण्वादौ==परमाणुद्रयणुकयोः, स्थूलत्वं महस्वम् असद - अविद्यमानं न । कुतः १ इत्याह तेभ्य एव = त्र्यणुक कारणत्वेन प्रसिद्धेभ्य एवाणुभ्यः, तदुद्भवात् = स्थूलत्वोत्पादात् । विपक्षे बाधकमाह - असत: - अणुष्व विद्यमानस्य स्थूलत्वस्य तत्समुत्पाद:- तेभ्योऽणुभ्य उद्भवः अतिप्रसङ्गतो न युक्तः ॥ ४६ ॥
अति 'मे'ति
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मूलम् - पञ्चमस्यापि भूतस्य तेभ्योऽसत्त्वाविशेषतः । भवेदुत्पत्तिरेवं न तव संख्या न युज्यते ॥ ४७ ॥
यदि तत्रादपि तत्पद्यते, तदाऽसच्चाऽविशेषतः पञ्चमस्थापि भूतस्योत्पत्तिः भवेत् । न चेष्टापत्तिरित्याह-- एवं च पञ्चमभूतोत्यन्यभ्युपगमे च तत्वसंख्या = ' चत्वार्येव भूतानि' इति विभागवचनोरा न युज्यते । एवं च देशनियमार्थमुक्तनियमाऽफल्पनेऽप्यसदनुत्पत्तिनिर्वादाय तन्नियमकल्पनमावश्यकमिति भावः ।
कारणाभावादेव पञ्चमभूतानुत्पत्तिः न त्वसत्त्वादिति चेत् ? सोऽपि कुतः ? असत्त्वादिति चेत् ? तदपि कुतः कारणाभावादिति चेद् ? अन्योन्याश्रयः । अस्ती[ असत् की उत्पत्ति में अतिप्रसङ्ग ]
परमाणु और द्रयणुक में महत्त्व को अविद्यमान नहीं माना जा सकता, क्योंकि उन्हीं से suणुक में महत्त्व की उत्पत्ति होती है। यदि परमाणु और द्वयणुक में महत्व के अधिमान होने पर भी उनसे महत्त्व की उत्पत्ति मानी जायगी, तो अतिप्रसङ्ग होगा ॥४६॥
४७ वीं कारिका में उक्त अतिप्रसंग को स्पष्ट किया गया है जो इस प्रकार हैयदि परमाणु अपने में अधिधमान महर को उत्पन्न कर सकते हैं, तो उन्हें अविद्यमान पञ्चमभूत को भी उत्पन्न करना माहिये। इस आपत्ति को शिरोधार्य नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह मान लेने पर 'चार हो भूत होते हैं इस प्रकार भूतों की जो संक्या निर्धारित है, वह असंगत हो जायगी । अतः देशविशेष में कार्य की उत्पत्ति के नियमनार्थ उक्त नियम की भावदपकता भले न हो पर असत् की अनुत्पत्ति के नियमार्थ उक्त नियम मानना अनिवार्य है ।
'म भूत की अनुपसि पत्रमभूत के असत्य से कारणाभाव से है, यह नहीं कहा जा सकता; क्योंकि rea से, और कारण का अवश्य कारण के अभाव से, होगा । अतः कारणाभाव का उपपादन में हो सकने से 'कारणाभाव से पञ्चममहाभूत की अनुत्पति है' यह कहना युक्ति संगत नहीं है। "अस्ति है' इस वुद्धि का विषय म होने से परममहाभूत की अनुत्पत्ति है" यह भी कहना ठीक नहीं है, क्योंकि 'अस्ति'
नहीं, किन्तु पश्चमभूत के 'कारण का अभाव कारण के ऐसा मानने पर अन्योन्याभय