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शास्ववार्तासमुच्चय-स्तबक १ लो० ४२ यच्चाप्युक्तम्-'अनुमितित्वस्य मानसत्वव्याप्यत्वाभ्युपगमाद् न प्रमाणान्तरप्रसा इति', तदप्यसत् , तदानीं वह्निमानसस्वीकारे लिङ्कादीनामपि मानसापत्तेः । न चाचार्यमत इत्र तत्र तहानमात्र इष्टापत्तिः, एवमप्युच्छालोपस्थितानां घटादीनां तत्र भानापत्तेः । न च परामर्शादिरूपविशेष सामग्रीविरहाद न तदापचिरिति वाच्यम्, सामान्यसामग्रीवशात् तदापत्तः । न च घटमानसत्वस्य परामर्शप्रतिबध्यतावच्छेदकत्वाद् न तदापत्तिा, पठमानसत्वादीनामपि तथात्वेनानन्तप्रतिवध्यप्रतिबन्धकमावकल्पने गौरवात् , वद्भिघटोभयानुमितिजनकपरामर्शस्थले व्यभिचारात्, तत्तत्परामर्शाभावविशिष्टतसत्परामत्वेिन प्रतिबन्धकत्वे च सुतरां तथात्वात्, सामान्यतो मानसत्वेनैव तव तत्प्रतिबध्यस्वावच्छेदकत्वौचित्यात् । न चैवमनुमितिसामयो सत्या भोगोऽपि कथं भवेदिति वाच्यम्, भोगान्यज्ञान प्रतिबन्धकतावच्छेदकतया समानोतजातिविशेषयता मुखदुःखानामुत्तेजकत्वादिति । अधिकं मकतन्यायालोक-स्याद्वादरहस्ययोरवसेयम् ।।४।। विनाश तथा उसको उत्पसि एवं उसके विनाश के कारण आदि की भी कल्पना करनी पडेगी । इस प्रकार उस पक्ष में महान कल्पना गौरव की आपत्ति होगी ।
इस विषय में इससे अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिये अन्धकार ने 'प्रा रहस्य' नामक स्वरचित ग्रन्थ की ओर संकेत किया है।
(मानसप्रत्यक्ष में अनुमिति का अन्तर्भाव अशक्य) 'लोकसिद्ध अनुमिति को प्रमाण मानने पर प्रत्यक्ष से भिन्न प्रमाण के अङ्गीकार की आपत्ति होगी' इसके उत्तर में चाक की ओर से जो यह बात कही गई कि-'अनुमितित्व को मानसत्व का व्याप्य मानने से प्रमाणान्तर की आपत्ति नहीं होगी, क्योंकि अमित मानसप्रत्यक्षा में अन्तर्भत है-वह भी ठीक नहीं है. क्योंकि धमपरामर्श के पाद होने वाले वहिकान को यदि मानस मामा जायगा तो हेतु आदि के मानसमान की आपत्ति होगी । यदि यह कहा जाय कि "अनुमिति के प्रमाणान्तरत्व पक्ष में जैसे जदयनाचार्य अनुमिति में लिङ्ग का मान मानते हैं उसी प्रकार अनुमिति को मामसप्रत्यक्षरूप मानने पर भी उसमें हेतु का भान मानने में कोई हानि नहीं है"-तो यह ठीक नहीं हो सकता, क्योंकि अनुमिति के मानसत्वपक्ष में केवल हेतु के ही मानस की आपत्ती न होगी किन्तु साध्य, हेतु, पक्ष आदि का घटक न होकर स्वतन्त्ररूप से जो भी घटादि पदार्थ धूमपरामर्श के समय उपस्थित होंगे उन सभी के मानस प्रत्यक्ष की आपत्ति होगी। ___ 'पहियोधकपरामर्शकाल में घटादि के बोधक परामर्श का अभाव होने से उनके मानसबोध की आपत्ति नहीं हो सकती' यह नहीं कहा जा सकता, क्योंकि परामर्श तो मानसविशेष का कारण है, सामान्यमानस का कारण तो पदार्थ की उपस्थितिमात्र ही है, अतः मानसविशेष के परामर्शात्मक कारण के अभाव में भी मामसलामान्य के कारण से पति के मानसविशेषात्मकअनुमिति के साथ घट आदि के सामान्यमानस की आपत्ति