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________________ - -- - -- -- ------ ...hand- - - - -- - स्था० का टीका प हिं. पि.. रूपस्कन्धवद् विज्ञानस्कन्धैक्योपगमाद न दोष इति चेत् ? न, तथापि 'योऽ इमनुभवामि सोऽहं स्मरामि' इत्यमेदावमर्शानुपपत्तेः । सादृश्येन वैसदृश्यतिरस्कारात् तथाऽवमर्शः, एवं च क्षणभने स्मृतिकर्वद्रुपपरमाणुपुजानामेव स्मृसिनियामकत्वाद् न कोऽपि दोष इति चेत् ? न, स्थैर्यप्रत्यभिज्ञाप्रामाण्ययोरुपपादयिष्यमाण स्वादिति दिक् ॥४१॥ विषय का स्मरण होने से कोई बाधा नहीं हो सकती"--तो यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि शरीर के अनेक अवयवों में एक विषय का अनेक ज्ञान मानने पर उन अनेक झानों के अनेक परामर्श अनुसन्धान की आपत्ति होगी और समय से विभिन्न अवययो में यदि पक ही व्यासज्यवृत्तिज्ञान तथा तम्मूलक एक ही सज्यवृत्तिसंस्कार माना आयगा तो आश्रयभूत अवयवों में किसी एक अधयव का भी नाश होने पर उम ज्ञान और संस्कार का ठीक उसी प्रकार नाश हो जायगा जिस प्रकार पक मात्रय का नाश होने पर व्यासज्यवृत्तिबहुत्यसंख्या का नाश हो जाता है। फलतः करयुक्त शरोर द्वारा अनुभूत विषय का स्मरण शरीर के करहीन होने पर न हो सकेगा, क्यों कि कर का नाश होने पर पूर्व शरीर के क' आदि वषों में आश्रित हाम का नाश हो जाने से समानविषयकउत्तरशान की उत्पत्ति न हो सकेगी इस दोष के परिवाराचे यदि यह कहा जाय कि-"जब किसी शरीर को कोई शान उत्पन्न होता है तब वह तथा उससे उत्पन्न होने वाला संस्कार उस शरीर में अथवा उसके स्थूल अवयवों में आश्रित न होकर उस शरीर के सभी परमाणुभों में आभित होता है, अतः जब उस शरीर का कर आदि कोई स्थूल अवयप नष्ट होता है तब उस स्थूल अवयव के परमाणु खण्डशरीर से केवल दूर हो जाते हैं, किन्तु उनका नाश नहीं होता। अतः खण्डशरोर के घटक परमाणुओं द्वारा विनष्ट अवयवों से अनुभूत विषय के संस्कार का खण्डशरीर में संक्रमण सम्भव होने से उक्तस्मरण को अनुपपत्ति नहीं हो सकती" -तो यह कथन ठीक नहीं है क्योंकि शान को परमाणुगत मानने पर परमाणुगत रूप आदि के समान परमाणुगत शान भी अतीन्द्रिय हो जायगा। (पूर्वविज्ञानस्कन्ध से उत्तरविज्ञानस्कन्ध को स्मरण नहीं हो सकता) क्षणभङ्गवादी बौद्ध के मत से यदि यह कहा जाय कि-"शरीर ही बारमा, मोर शरीर यह रूपस्कन्ध, संसास्कन्ध संस्कारस्कन्ध, वेदनास्कन्ध और विधानस्कन्ध इन पांच स्कन्धों की समधि रूप है। इनमें विधानस्कन्ध हो अनुभव स्मरण आदि का उत्पत्ति स्थल है । करयुक्त शरीर के विज्ञानस्कन्ध से करहीन शरीर में ठी उसीके जैसा नया विज्ञान-स्कन्ध उत्पन्न हो जाता है, अतः करयुक्त शरीर के विज्ञानस्कन्ध से अनुभूत विषय का स्मरण करहीन शरीर के विधानस्कन्ध को होने में कोई बाधा नहीं हो सकती"-तो यह ठोक नहीं है, क्योंकि अनुभवकार्य विज्ञानस्कन्ध और स्मरण कर्ता विशानस्कन्ध में मेद होने पर अनुभवका भौर स्माणकर्ता में ममेद शा. वा. १७
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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