SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्या० क० टीका व हिं. पि० कुतः ? इत्याह-जातिस्मरणस्य भवान्तरानुभूतार्थविषयस्थ मतिज्ञानविशेषस्य संश्रयात्= लोकेनाङ्गीकरणात् । न हि भवान्तरानुभूतार्थस्मरणमन्वय्यात्पद्रव्यं विनोषपद्यते, शरीरस्य भवान्तराऽननुयायित्वात् । 'भवान्तरादागमनाऽविशेषऽपि केपांचिदेव जातिस्मरणं न सर्वेषामिति कथं विशेषः । इति तटस्पशम.माह-सर्वेषाभिमाध्यतिरिकालो - भारश्व-जातिस्मरणाऽभावश्च, चित्रस्य बहुविधशक्तिकस्य, कर्मणः तदावरणस्य, विपाकः फलप्रदानाभिमुख्यकालस्तस्मात् । ४०॥ अत्रैव दृष्टान्तमाह 'लोकेऽपि' इतिमूलम्-लोकेऽपि नैकत्तः स्थानादागतानां तथेक्ष्यते । अविशेषेण सर्वेषामनुभूतार्थसंस्मृतिः ॥४१॥ लोकेऽपि इहलोकेऽपि, एकतो-विवक्षितात् स्थानाद् आगतानां सर्वेषाम् , अनुभूतार्थसंस्मृतिविशेषेण नेक्ष्यते । कस्यचिदनुभूत यावदर्थस्मृतिः, कस्यचित् कतिपयार्थस्मृतिः कस्यचिच्चार्थमात्राऽस्मृतिरिति विशेषदशनात् । एवं चात्र दृष्टविशेषस्य चित्रकर्मविपाकप्रयोज्यत्वाद् जात्यस्मरणमपि तत्प्रयोज्यमिति सिद्धम् । जो लोग शब्द और शम्बोपजीवी प्रमाणों को न मान कर केवल प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मानते हैं, उनके मत में भी 'आत्मा नहीं सिद्ध है' यह बात नहीं है, अपितु उन्हें भी आत्मा का अस्तित्व मान्य है। क्योंकि वे लोग भी जातिस्मरण अर्थात् पूर्वजन्म में अनुभूतअर्थ का स्मरण मानते हैं जो जैनदर्शन में मतिमान का ही एक विशेष प्रकार है । यदि विभिन्नजन्मों में अम्बयी आत्मद्रव्य को स्वीकार न किया जायगा तो जातिस्मरण की उपपत्ति न हो सकेगी ! शरीर से जातिस्मरण की उपपत्ति नहीं की जा सकती क्योंकि किसी एक शरीर का विभिन्नजन्मों से सम्बन्ध नहीं होता । “पूर्वजन्म से नये जन्म में आने वाले मनुष्यों में कुछ ही को जातिस्मरण कयों होता है ? सभी को क्यों नहीं होता ?" इस तटस्थ शङ्का का समाधान यह है कि 'जिन मनुष्यों के मतिशाम विशेष रूप जातिस्मरण के आवरणभूत कर्म का घिपाक-फलप्रदानकाल उपस्थित रहता हैं उन्हें उनके कर्मदोष से जातिस्मरण नहीं होता,' इस प्रकार की कल्पना करने में कोई बाधा नहीं हो सकती क्योंकि मनुष्य की आत्मा में अनेकजम्मों के अनेकविध कमों की राशि संचित रहती है, जो अपने विपाककाल में फलदायी होती है ॥४॥ (जाति स्मरणाभाव भी विचित्रकर्मविपाक से प्रयोज्य है) पूर्व कारिका में यह बात कहो गयी है कि वर्तमान जन्म में जिन मनुष्यों को पूर्वजन्म में अनुभूत अर्थ का स्मरण नहीं होता, उनका यह स्मरणाभाव उनके जातिस्मरणाव. रणीयकर्म के विपाक के कारण ही होता है, ४१ वी कारिका में दृष्टान्तद्वारा इस बात की पुष्टी की जा रही है लोक में यह देखा जाता है कि जब अनेफलोग एकस्थान से किसी नये स्थान में जाते हैं, तब उन सभी लोगों को पूर्वस्थान में अनुभूत सभी अर्थों को समान
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy