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११.
शास्त्रवार्तासमुच्चय-स्तषक १ प्रलो० ३९ चान्यदा चैतन्यव्यक्तिप्रसङ्गः, तत्काले भूतस्य विशिष्टपरिणामभिन्नत्वेन व्यन्जकाभावात् । न चैकत्र भेदाभेदोभयविरोधः, कालभेदेनकत्रोभयसमावेशात । कथमन्यथा पकतादशायां घटादौ 'अयं न श्यामः' इत्यादिधीः । न च तत्र विशेषणसंसर्गाभाव एव विषयः, अनुयोगिनि सप्तमी विना तदनुपपवेरािंत दिक । इति एतत्भकारम् , एतत् प्रकृतवचनं, कालाभावे न संगतम्-अलीकम्, न हि कालो नाम तत्त्वान्तरमिष्यते परैः। मामा जायगा तब उसे अतिरिक्ततत्त्व के रूप में मानने का प्रश्न ही नहीं ऊठेगा । फलतया उक्त परिणाम को मान्यता प्रदान करने से तत्वञ्चतुष्टयवाद की कोई हानि नहीं हो सकेगी। इसी प्रकार उक्तपरिणाम के अभावकाल में भूत जब उक्तपरिणाम से भिन्न होंगे तब उक्तपरिणाम को चेतना का व्यन्जक मानने पर भी उक्तपरिणाम के अभाष काल में ये चेतना के व्यजक नहीं होंगे, अतः उस काल में उन में चेतना के साक्षात्कार की आपत्ति न हो सकेगी।
यदि यह शंका की आय कि-"मेद और अमेव में परस्पर विरोध है, अतः उन दोनों का सहअवस्थान न हो सकने से यद कल्पना कि-'भूतों के कायाकारपरिणाम और भूतों में-उस परिणाम के अस्तित्वकाल में अभेद होता है, और परिणाम के अभावकाल में भेद होता है'-उचित नहीं है"-तो यह शका ठीक नहीं हो सकती, क्योंकि परस्पर विरोधी वस्तुओं का भी कालमेद से पकस्थान में समावेश सर्वसम्मत है।
यह स्पष्ट है कि जो घट पाक से पूर्व श्याम होता है वही जब पक कर रक्त हो जाता है तब उसमें यह प्रतीति होती है कि-'अब घट श्याम नहीं है' । किन्तु यदि कालमेद से भेद और अभेद का पका समावेश न माना जायगा तो एक घर में पाक से पूर्व श्याम का अभेद और पाक के बाद श्याम का मेव न हो सकने से उक्त प्रतीति न हो सकेगी।
यदि यह कहा जाय कि-"अब घट श्याम नहीं है' यह प्रतीति पके घट में श्याममेद को विषय नहीं करती किन्तु श्यामरूपात्मऋविशेषण के संसर्गाभाव को विषय करती है, अतः इस प्रतीति के बल पर एक वस्तु में परस्परविरोधी भेद और अमेद के समावेश का समर्थन नहीं किया जा सकता"-तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि उक्त प्रतीति के बोधकवाक्य में अनुयोगियोधक 'घट' शब्द के उत्तर सप्तमीविभक्ति न होने से उक्तवाक्य में आये 'न' शब्द से संसर्गाभाव का बोध नहीं हो सकता।
कहने का आशय यह है कि अयं न श्यामः' अथवा 'इदानी घटो , श्यामः' ये थाक्य ही उक्तप्रतीति के बोधवाक्य हैं, इनमें 'श्याम'शब्द प्रतियोगी का और 'घट' शब्द अनुयोगी का बोधक है। प्रतियोगबोधकशब्द के समान अनुयोगियोधकशप के उत्तर भी प्रथमा ही विर्भाक्त है. सप्तमीविभक्ति नहीं है। अतः उक्तवाक्य में आये 'न' शब्द से संसर्गाभाव का बोध नहीं माना जा सकता, क्योंकि 'न' शब्द से संसाभाय का बोध न होने में अनुयोगीषोधकशब्द के उत्तर सप्तमीविभक्ति की अपेक्षा होती है, जैसे कि 'भूतले न घटः (=भूतल में घट नहीं है।' इस वाक्य में अनुयोगियोधक भूतल' शब्द के उत्तर सप्तमीविभक्ति होने से उक्तवाक्य में आये 'न' शब्द से भूतल में