SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५२ शास्त्रषार्तासमुच्चय-स्तबक र आवृत्तिन, आवारकत्वस्य भावत्वव्याप्यत्वेन तथात्वे तस्य 'भावताऽऽप्तेः भावत्वप्रस नात् । न चावारकत्वं न भावत्वव्याप्यम् , अन्धकारे व्यभिचारादिति वाच्यम्. अन्धकारस्य द्रव्यत्वेन व्यवस्थापयिष्यमाणत्वात् । तुच्छत्वादभावस्थ नावारकत्वमिति, तथात्वे भावत्वात्तिरित्य-ये । दुषगान्तरमाह- 'ती'-विशिष्टपरिणामाभावस्य चेतनासाक्षात्कारप्रतिबन्ध करवे तदभावत्वेन तदेतुत्वे गौरवाद् नामाऽस्य विशिष्टपरिणामस्यैव लापवेन व्यजकत्वप्रसङ्गात् ॥३७॥ न चेष्टापत्तिः, इत्याह 'न चासाविति - मूलम्-न चासो भूतभिन्नो यत् ततो व्यक्तिः सदा भवेत् । भेदे त्वधिकभाषेत तत्त्वसंख्या न युध्यते ।।३८॥ (कायाकार परिणाम का अभाव आवरण नही है ।) 'शरीर पृथिधी आदि चार भूतों का विशिमपरिणाम है। इस परिणाम का जमाव हो खेतमा का आवारक है । असंहतभूतों में इस परिणाम के न होने से ही चेतना की अनुभूति नहीं होतो' । इस कथन के विरोध में प्रन्थकार का यह तर्क है कि आधारकत्व भाषत्व का व्याप्य होता है अर्थात् भावात्मक पदार्थ ही आधारक होता है। अतः यदि कायाकार परिणाम के अभाव को आवारक माना जायगा, तो उसे अभाव न मान कर भाषात्मक स्वीकार करना पड़ेगा । यदि कहा जाय कि-माधारकत्व को भावस्थ का व्याप्य नहीं माना जा सकता, क्योंकि अन्धकार स्थ और पर के प्रकाशक तेज का अभाधरूप होने से भावात्मक न होने पर भी आधारक होता है, अतः उसमें उक्त व्याप्ति का व्यभिचार है"-तो यह कथन ठीक न होगा, क्योंकि जैनमत में अन्धकार द्रव्यरूप है यह आगे का ७७ के विवरण में प्रतिष्ठापित किया जायगा 1 द्रव्यरूपता होने के कारण अभावात्मक न होकर पक भावात्मकपदार्थ है, अतः उसे आवारक मानने पर आवारकत्य में भावत्व की व्याप्ति का भङ्ग नहीं हो सकता। अन्य विद्वान यह कर कर अभाव की आवारकता का निषेध करते हैं कि 'अभाव तुच्छ होने से मावारक नहीं हो सकता । यदि उसे आधारक माना जायमा तो उसे भागत्मक भी मानना पडेगा, कायाकार परिणाम का अभाव यतःभावात्मक नहीं है अनः उसे चेतना का आवारक नहीं माना जा सकता। कायाकार परिणाम के अभाव को चेतना का भावारक मानने में दुसरा भी दोष है, और वह यह कि यदि विशिघ्रपरिणामाभाव को चेतना का आधारक माना जायगा तो उसके अभाव को अर्धान् कायाकार परिणाम के अभाव को चेतमासाक्षात्कार का जनक मानमा होगा, और यह मानना गौरवग्रस्त होने से उचित नहीं है। उसकी अपेक्षा तो यही उचित प्रतीत होता है कि कायाकार परिणाम हो चेतनासाक्षात्कार का जनक है क्योंकि कायाकार परिणामाभाष के अभाव की अपेक्षा कायाकारपरिणाम लघु है ॥३॥ ३. धी कारिका में भूतों के कायाकारपरिणाम की चेतनाव्याजकता का निरसन किया गया है । करिफा का अर्थ इस प्रकार है
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy