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शास्त्रवासिमुडबय-स्तबक र अत्र परमार्थवादिनामाईतानां मतमाह-अचेतनानि इतिमूलम्-मचेतनानि भूतानि न तद्धर्मो न तत्फलम् ।
चेतमाऽस्ति च, यस्येयं स एवात्मेति बापरे ॥३१॥ भूतानि-पृषिम्यादीनि, भचेतनानि चैतन्याऽभाववत्वेन प्रमितानि । अतश्चेतना बद्धर्मों म-भूतस्भावभूता न । अत एव च तत्फल न भूतोपादानकारणजन्या न, मृदो घटस्वेव तत्स्वभावस्यैव तदुपादेयत्वान् । अस्ति च चेतना, प्रतिप्राण्यनुभवसिद्धत्वात् । अतो यस्येयं स्वभावभूता फलभूता च, स एवात्मा, परिशेषाद्, इति चापरे जैनाः । ३१॥
विपक्षे बाधकमाह 'यदीयमिति-- . फलतः ऐसी कोई भी वस्तु-जो प्रत्यक्ष प्रमाण से सिद्ध नहीं होती-प्रमाणहीन होने से उसका अस्तित्व नहीं माना जा सकता। अतः प्रत्यक्षमाय न होने से भात्मा का भी अस्तित्व स्वीकार्य नहीं हो सकता । प्रमाण के सम्बन्ध में लोकातिको चार्वाक के अनुयायियों का यही वक्तव्य है। [चार्याक पूर्वपक्ष समाप्त ॥३०॥
___'अचेतनानि' इस प्रलोक द्वारा आत्मा के विषय में परमार्थवादी जैनों का मत बताया गया है, जिसका आशय निम्नोक है।
[परमार्थवादी जैनों का उत्तरपक्ष] पृथियो भादि भूतों में चैतन्य का अभाव प्रमाणसिद्ध है, इस लिये सन्य को भूतों का स्वभाव नहीं माना जा सकता । चैतन्य भूतों का स्वभाव नहीं है, इसीलिये भूताः स्मक उपाबानकारण से उसकी उत्पत्ति नहीं मानी जा सकती । क्योंकि यह नियम है कि 'जो जिसका स्वभाव होता है वही उसका उपादेय कार्य होता है' जैसे घड़ा मिट्टी का स्वभाव होने से मिट्टी का उपादेय होता है । चैतन्य भूतों का स्वभाव न होने से भूतात्मक उपादानकारण से नहीं उत्पन्न हो सकता। - यदि यह कहा जाय कि-"चेतना' नाम की कोई वस्तु हो नहीं है, अतः 'वह किसका स्थभाष है और किस उपादानकारण का कार्य है' यह विचार ही निरर्थक है"-तो यह कहना ठीक न होगा, क्योंकि प्रत्येक प्राणी को चेतना का अनुभव होता है, अतः चेतना के भस्तित्व में किसी का मत्य नहीं हो सकता। तो फिर चेतना का अस्तित्व जब निर्विधाव है तो उसे किसी का स्वभाव और किसी उपादानकारण का कार्य मानना ही होगा, तो उसे जिसका स्वभाष तथा जिस उपादानकारण का कार्य माना जायगा, वह उपर्युक्त याचा के कारण पृथिवी आदि भूतपदार्थ न हो कर उनसे कोई अम्य ही होगा । तो पृथिवी आदि से भिन्न पेसा जो पदार्थ होगा, जिसे चैतन्य स्वभाव का आश्रय एवं चैतन्य का उपादानकारण माना जा सके, वही 'आत्मा' है। इस प्रकार परिशेष अनुमान से चेतना के आश्रय और उपादानकारण के रूप में आत्मा का अस्तित्व सिद्ध है। आत्मा के विषय में जैनो की यही मान्यता है ॥३॥
'तना पृथिवी आदि भूतों से भिन्न आत्मा का धर्म है' यह सभी आत्मघाती दार्शनिकों का स्वपक्ष है। चेतना पृथिवी आदि भूतों का ही धर्म है, चेतमा का