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________________ स्या० का टीका व हिं० वि० फलितमाह-'तस्मादितिमूलम्-तस्मादवश्यमेष्टव्यः कश्चिद्धेतुस्तयोः क्षये । स एवं धर्मो विज्ञेयः शुद्धो मुक्तिफलप्रदः ॥२५॥ तस्मात् कादाचिकत्वस्य सहेतुकत्वव्याप्यत्वाद, अवश्यं काश्चत्, तयोः धर्माऽधर्मयोः रंगे हेतुरेष्टनमः- अकोपर्नयः । य एन चान हेतुः स एव शुद्धः सर्वांशंसारहितः, मुक्तिलक्षणफलप्रदः, धनॊ धर्मपदवाच्यः, मन्तव्यः श्रद्धेयः ॥२५॥ चोद्यशेष परिहरति 'धर्माऽधर्मेति ... मूलम्-धर्माऽधर्मक्षयाद मुक्तिर्यच्चोतं पुण्यलक्षणम् । हेयं धर्म तदाश्रित्य, न तु संज्ञानयोगकम् ॥२६॥ यच्च 'धर्माऽधर्मक्षयाद मुक्तिः' इत्युक्त, तत् पुण्यलक्षणं हेय त्याज्यं धर्मभाश्रित्य - प्रकृतधर्मपदशक्तिग्रहविषयीकृत्य, न तु संज्ञानयोगसंज्ञ धर्ममाश्रित्य, तेन न बाध इति सर्वमवदातम् ॥२६॥ दुष्परिणाम यह होगा कि-'गदमा धुमः धूम गर्दभावधिक है-इस प्रतीति में प्रमात्व को आपत्ति होगी। अतः अवधि और हेतु के लक्षण में उक्त रूप से पार्थक्य को कल्पना उचित न होने से अवधि और हेतु में फेक्य होने के कारण धमाधमक्षय के साधि होने का अर्थ होगा सहेतुक होना, और यह सहेतुकता संज्ञानयोग को छोड़ किसी अन्य हेतु.बारा सम्भव नहीं है-अतः धर्माधर्मक्षय के हेतुरूप में संज्ञानयोग की कम्पमा अपरिहार्य है ॥२४॥ २५ वीं कारिका में पूर्वोक्त विचारों का निष्कर्ष बताते है-- कादाधिरकत्व अर्थात् समूचे काल में न हो कर कुछ दी काल में होना, यह सहेतुकत्व का व्याप्य है जहाँ जहाँ काचिकत्व है वहां वहां सहेतुकत्व होता ही है, इस व्याप्ति के कारण धर्माऽधर्म के क्षय का कोई हेतु मानना आवश्यक है, क्योंकि वह भी सावैदिक न हो कर कावाचिक ही होता है। तो जो ही धर्माधर्म के क्षय का हेतु माना जायगा उसे ही मुक्ति रूप फल को देने वाला 'शुद्ध'-समस्तफलकामनाओं से शल्य धर्म भानना चाहिये ॥२५॥ २६ घाँ कारिका में अवशिष्ट प्रश्नों का समाधान किया जा रहा है शुद्ध धर्म को मोक्ष का हेतु मानने पर यह प्रश्न ऊठता है कि जब मोक्ष भी धर्म से ही उपाय है तब धर्म और अधर्म दोनों के क्षय को ओ माक्ष का कारण कहा गया है वह कैसे संगत होगा ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि धर्माधर्म के क्षय को जो मोक्ष का हेतु कहा गया है, वह पुण्यलक्षण त्याज्य धर्म को 'धर्म' पद का अर्थ मान कर कहा गया हैन कि संज्ञानयोग नामक धर्म को धर्म पद का अर्थ मान कर कहा गया है। अतः शुद्ध धर्म को मोक्ष का हेतु कहने से 'धर्माधर्म के क्षय से मोक्ष का उदय होता है इस कथन का बाध नहीं हो सकता । फलतः मोक्षकारणता के सम्बन्ध में जो कुछ कहा गया है वह सब निदोष है। 'संज्ञानयोगक' शब्द में 'योग' शब्द के उत्तर जो 'क' शब्द
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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