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शास्त्रवासिमुच्चय-लो. २४. अनुत्पत्ति स्वभाव होने के कारण यह कभी उत्पन्न न हो सकेगा; और उत्पन्न हुये विना अस्तित्व में न आ सकेगा ___ यदि यह कहा जाय कि- सदारित् हो न हो या स्वार है, अतः सभी काल में उसको उत्पति और सभी काल में तत्मयुक्त उसकी स्थिति की आपत्ति नहीं हो सकती' तो यह भी ठीक नहीं है, क्योंकि यदि कदाचित् ही उत्पन्न होना उसका स्वमाव होगा तब भी उसके विषय में यह प्रश्न उठेगा कि वह किसी नियतकाल में ही क्यों उत्पन्न होता है ? कालान्तर में क्यों नहीं उत्पन्न होता ? इसके उत्तर में यदि यह कहा जाय कि-'अमुक काल विशेष में ही उत्पन्न होना उसका स्वभाष है, अतः अन्यकाल में उस की उत्पत्ति की आपत्ति नहीं हो सकती'-तो यह भी ठीक नहीं है, क्योंकि पेसा मानने पर वह अहेतुक न हो सकेगा। इसका कारण यह है कि यदि उसे सहेतुक न मान कर अहेतुक माना जायगा तो उसके लिये सभी काल समान होने से'अमुक काल विशेष में ही उत्पन्न होना उसका स्वभाष है'-उसका यह स्वभाव ही न धन सकेगा। यह स्वभाव तो तभी बन सकेगा जब उसे सहेतुक माना जाय, क्योंकि सहेतुक मानने पर यह कल्पना की जा सकेगो कि जिस काल में उसके हेतुमों का सन्निधान होता है उसी काल में उत्पन्न होना उसका स्वभाव है।
यदि यह कहा जाय कि-"जैसे अहेतुक आकाश के धर्म आकाशत्व का क्वाचिकत्य% किसी आश्रय विशेष में ही रहने का स्वभाव-हेतु नियम्य नहीं हैं, उसी प्रकार धर्माधर्म के क्षय का कादाचिरकत्व-किसी कालविशेष में ही उत्पन्न होने का स्वभाव भी हेतुनिधम्य नहीं है, यह मानने में कोई बाधा नहीं है,"-तो यह कथन ठोक नहीं है, क्योंकि कादाधिकत्व का अवधिनियम्य होना सर्वसम्मत है। यदि यह कहा जाय कि-"मवधिनियम्य होने पर भी वह हेतु-नियम्य नहीं हो सकता, क्योंकि अवधि उसके उत्पत्ति के लिये अपेक्षणीय न होने से उसका हेतु नहीं हो सकती" तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि किसी भी उत्पत्तिमान पदार्थ का अवधि वही पदार्थ होता है जो उसकी उत्पत्ति के पूर्व उसके उत्पत्तिस्थल में नियम से विद्यमान हो । तो जो पदार्थ जिस उत्पत्तिमान का पेसा अवधि होगा, वह उस उत्पत्तिमान की उत्पत्ति में अपेक्षणीय होने से उसका हेतु अवश्य होगा, क्योंकि किसो उत्पत्तिमान् की उत्पत्ति के पूर्व उसके उत्पत्तिस्थल में नियम से किसी का विद्यमान होना जो आवश्यक है वही उत्पत्ति के लिये उत्पत्तिमान द्वारा उसका 'अपेक्षणीय' होता है। और इस प्रकार उसके अपेक्षणीय होने का ही अर्थ है उत्पत्तिमान के प्रति उसका हेतु होना। ___यदि यह कहा जाय कि-'अवधि' और 'हेतु' के लक्षण में ऐक्य नहीं है किन्तु पार्थक्य है, और वह इस प्रकार कि जो पदार्थ जिस उत्पत्तिमान् की उत्पत्ति के पूर्व उत्पत्तिस्थल में विद्यमान हो वह उसको अवधि' है, और जो उत्पत्तिमान की उत्पत्ति के पूर्व उसके उत्पत्ति स्थल में नियम से विद्यमान हो वह उसका 'हेतु'है। अतःलक्षणमेद कारण अवधि और हेतु में भेद होने से धर्माधर्मक्षय में सावधित्व सिद्ध होने से सहेतुकत्व की सिद्धि नहीं हो सकती"-तो यह ठोक नहीं है, क्योंकि अघधि के लक्षण में नियमांश का प्रवेश न करने पर जो जिसका अनियत पूर्ववर्ती है वह भी उसका अवधि हो जायगा, फलतः 'गर्दभ' धूम का अनियतपूर्ववर्ती होने पर भी उसका अवधि होगा और उसका