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स्था० क० टीका व हिं. वि०
आगमविप्रतिपन्नं प्रति संज्ञानयोगे कार्यान्यथानुपपत्ति प्रमाणयति तमन्तरेण इति - मूलम् -तमन्तरेण तु तयोः क्षयः केन प्रसाध्यते !
सदा स्यान्न कदाचिद्वा यवहेतुक एव सः ॥२४॥
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तमन्तरेण तु संज्ञानयोगं विना तु तयोः धर्माधर्मयोः क्षयः केन हेतुना प्रसा ध्यते १ न केनापि तथाविधत्वनुपलम्भादहेतुक एवाथमस्तु, सहेतुकविनाशस्य दु:खद्धानत्वादिति बौद्धाशङ्कायामाह - यवहेतुक एव हेतुरहित एव सः-धर्माधर्मोभयक्षयः, तदोपतिस्वभावत्वे सदैव स्याद्, अनुत्पत्तिस्वभावत्वे कदापि वा न स्यात् । 'कदाचिदुत्पत्तिस्वभावत्वाद् न सदैव स्यादिति चेत् ? तर्हि कालान्तरेऽप्युत्पत्तिप्रसङ्गः । ' तदहरेवोत्पत्तिस्वभावाद् नान्यदोत्पत्तिः' इति चेत् ? तर्हि तत्तद्धेतुसकाशादेवोत्पत्तिस्वभावत्वादाय सहेतुकत्वम् | 'आकाश (त्व)स्य काचित्कत्ववद कादाचित्कत्वमप्यत्र न नहेतुनियम्यमिति चेत् न, कादाचित्कत्वस्याऽवधिनियतत्वात् । ' सन्त्ववचयः, न तु तेनाऽपेक्ष्यन्त' इति चेत् ? न, नियतपूर्ववृत्तित्वस्यैवापेक्षार्यत्वाद्, अन्यथा 'गर्दभाद् धूमः' इत्यपि प्रमीयेति । अधिकमुपरिष्टाद् वक्ष्यते ॥ २४ ॥
द्वारा कार्य की अन्यथानुपपत्तिरूप प्रमाण से उसकी प्रामाणिकता बतायी जा रही है । कारिका का अर्थ इस प्रकार है
प्रश्न : संज्ञानयोग को स्वीकार न करने पर धर्म और अधर्म का क्षय किस हेतु से सम्पन्न होगा ?
उत्तर : विचार करने पर उसका अन्य कोई हेतु नहीं सिद्ध होता, अतः धर्माधर्मtray कार्य की अन्यथा उपपत्ति न होने से उसके उपपras रूपमें संज्ञानयोग को स्वीकार करना अनिवार्य है ।
( निरन्वयनाशवादी बौद्धमत का खण्डन )
इस विषय में बौद्धों का कथन यह है कि - "विनाश को सहेतुक मानना शक्य नहीं है, क्योंकि यदि विनाश सहेतुक होगा तो जिस जन्य पदार्थ के विनाश का हेतु कभी सन्निहित न होगा. उस जन्य पदार्थ को अविनाशी मानना होगा, जो उचित नहीं है, क्योंकि जन्य पदार्थ के विनाश की अनिवार्यता सर्वसम्मत तथ्य है, इसलिये यह संकट न उपस्थित हो एतदर्थे विनाश को अहेतुक ही मानना उचित है। अतः धर्म और अधर्म का विनाश भी बिना हेतुके ही उपपन्न हो जायगा, इसलिये उसके उपपादमार्थ संशानयोग की कल्पना नहीं की जा सकती" ।
इस कथन का निराकरण कारिका के उत्तरार्ध में इस प्रकार किया गया है किधर्म और अधर्म के क्षय को अहेतुक नहीं माना जा सकता, क्योंकि अहेतुक मानने पर यदि उसे उत्पत्ति स्वभाव माना जायगा तो सभी काल में उसका अस्तित्व मानना पडेगा, क्योंकि उत्पत्ति स्वभाव होने के कारण वह कभी अनुत्पन्न न रह सकेगा और यदि उसे अनुत्पत्ति स्वभाव माना जायगा तो किसी भी काल में उसका अस्तित्व न होगा चूँकि