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(e) हैं। १ करोड़ स्थान हैं। १ लाख करोड़ भैसे हैं । १० हजार म्लेच्छ राजानी के द्वारा चक्रवर्ती सुशोभित होता है ।
सत्र
नव निधयः ॥१८॥ प्रत्येक एक एक हजार यक्ष देवों से राशि नौनिधियां होती हैं। १-तीनों ऋतुओं के योग्य द्रव्य को देनी वाली काल निधि है ।
२ नाना प्रकार के भोजन विशेषता को देने वाली महाकाल निधि होती है।
३ प्रत्येक गोधूमादि सम्पूर्ण धान्य को देने वाली पाण्डु निधि है ।
४ असि, मूसल, इत्यादि नाना आयुध को देने वाली माणवक निधि है।
५ तत, वितत, धन, सूशिर भेद बालेवादित्रों को देने वाली शंख निधि है। ६ अनेक प्रकार के महल मकान आदि को देने वाली नैसर्प निधि है ।
७ स्वर्गीय वस्त्रों की स्पर्धा करने वाले बेशकीमती वस्त्र को देने वाली पद्म निधि है।
८ स्त्री पुरुषों को उनके योग्य आभरण देने वाली पिंगल निधि है।
६ वन, बंडूर्य, मरकत मानिक्य, पद्म राग, पुप्प राग आदि को देने वाली सर्वरल निधि है।
इन निधियों में से चक्रवर्ती की प्राज्ञानसार चाहे जितनी भी चीज निकाल ली जाय तो भी अटूट रहती हैं। सूत्र--
__ दशांगभोगानि ॥१६॥ दिव्य नगर, दिव्य भोजन, दिव्य भोजन, दिव्य शयन, दिव्य नाट्य, दिव्य प्रासन, दिव्य रत्न, दिव्य निधि, दिव्य सेना, दिव्य वाहन ऐसे दशांग भोग चक्रवर्ती की विभूतियां हैं।
मागे नव बलदेव का वर्णन करने के लिए सूत्र कहते हैं ।
नव बलवेवाः ॥२०॥ यह नव बलदेव इस प्रकार हैं ।
१ श्री कान्त, ३ शान्त चित्त, ३ वर बुद्धि, ४ मनोरथ, ५ दयामूर्ति, ६ विपुल कीर्ति ७ प्रभाकर, ८ संजयंत, ६ जयंत, ये अतीत काल के बलदेव है।