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निकलती है तब चक्रवर्ती को तुरन्त ही बारह योजन उछालकर दूर ले जाने बाला अश्व रस्न है। . १२ चक्रवर्ती की इच्छानुसार प्रासाद आदि को बनाकर तदनुकूल सहायता करने वाला स्थपति रत्न होता है।
१३ चक्रवर्ती के अन्तःपुर में जो ९६००० स्त्रियाँ होती हैं वे सभी अपने-अपने मन में यह मानती रहें कि शाम से लेकर सुबह तक चश्वर्ती महाराज तो मेरे पास रहे, इस प्रकार की अद्भुत् विक्रिया शक्ति के धारक चक्रवर्ती की कामवासना को शान्त कर देने वाला स्त्री रत्न होता है ।
१४ सम्पूर्ण कटक सैन्य को धर्म कर्मानुष्ठान से चलाने वाला पुरोहित रत्न होता है । चक्रवर्ती के साढ़े तीन करोड़ बंधुवर्ग और संख्यात सहस्र पुत्र, पुत्रियाँ, ३६१ शारीरिक वैद्य तथा ३६१ रसोश्या होते हैं । और एक एक रसोइया ३६० दिन तक ढाई द्वीप में रहने वाली दिव्यौषधि को अन्नपानादि में गिलाकर ग्रास बनाता है। फिर ३२ ग्रासों में से केवल एक ग्रास निकालकर ४८ योजन प्रमाण में रहने वाली समस्त सेना को खाने को देता है और उसे खाकर पानी पीते ही जब सभी को अजीर्ण हो जाता है तब बह ग्रास चक्रवर्ती के खाने योग्य परिपक्व होता है। ऐसे ३२ ग्रासों को चक्रवर्ती प्रतिदिन पचाने वाला होता है। - उन प्रासों में से स्त्री रत्न, गजरत्न, अश्वररन, केवल एक एक ग्रास को पचा सकते हैं। अब चक्रवर्ती की इन्द्रियों की शक्ति को बतलाते है।
१२ योजन की दूरी पर यदि कोई भी वस्तु गिर जाये तो उसकी आवाज चक्रवर्ती कर्ण द्वारा सुन सकते हैं । ४७२६३ साधिक योजन तक के विषय को देखता है । प्राण और स्पर्शन इन्द्रिय से ६० योजन जानता और सूघता है। ३२ चमर २४ शंख, उतनी ही, भेरी पटह, यानी १२ मेरी और १२ पट होते हैं। इन सम्पूर्ण की द्वादश योजन तक ध्वनि जाती है । इनके साथ १६००० मगपति ( मंग रक्षक) देव होते हैं। ३२००० मुकुट-वद्ध, इतनी ही नाट्य शाला, उतनी ही संगीत शाला, उतने ही देश, वृत वृतान्त तक आदि होते हैं । ६६ करोड़ ग्राम, चार द्वार वाले प्राकार वाले ७५ हजार नगर, नदी वेष्ठित १६ हजार गांव, पर्वत वेष्ठित २४ हजार खर्वड, प्रत्येक ग्राम के लिए ५०० मुख्य, ४०० मडंव, रत्न योगी नाम के ४८ हजार पट्टन (नगर) हैं । समुद्र और खातिका से घिरा हुमा ६६ हजार द्रोण मुख नगर होते हैं । १६ हजार वाहन हैं । चारों . ओर से घिरे हुए हैं २८ हजार किले होते हैं । अन्तर द्वीप ५६ हैं। ६०० प्रत्यन्तर . हैं । ७०० प्रत्यंतर कुक्षि निवास अटवी हैं । ८०० कषा है। ३ करोड़ गाय